पंचायत चुनाव सम्पन्न हो गया। पश्चिम बंगाल में ग्रामीण विकास का अन्यतम केंद्र है-पंचायत।यही हमारा अनुभव है। पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार की यही घोषणा थी। राइटर्स बिल्डिंग से नहीं,गाँव का संचालन गाँव के लोग करेंगे। लोगों के वोट, उनके द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि,आम आदमी के दिए हुए कर के रुपयों से आम लोगों का विकास होगा। इलाके के बुनियादी ढांचे का विकास होगा।सिर्फ भौतिक ढांचे का विकास नहीं, मानसिक, बौद्धिक और चेतनायुक्त विकास।उसी लक्ष्य से ग्राम पंचायत का गठन,18 साल में मतदान का अधिकार की स्वीकृति, महिला, अनुसूचित जाति-जनजाति,उपजाति में सीटों का आरक्षण,बर्गादार,बँटाईदारों को जमीन का वितरण, जनता के विकास में परियोजनाओं के खर्च में 35% रूपया पंचायत के माध्यम से खर्च करने का निर्णय लिया गया।सिर्फ कागजी निर्णय नहीं उसे कानून में बदलना। जिससे विकास की दौड़ में पिछड़े हुए मेहनतकश लोगों का अधिकार सुरक्षित रह सके। लड़ाई, आंदोलन के माध्यम से ग्रामीण रोजगार योजना में 100 दिन के काम की गारंटी को कानूनी मान्यता देना,उसकी उचित मजदूरी ठीक करना, और सबसे जरूरी इन सब कामों में गाँव के आम लोगों द्वारा स्वत: स्फूर्त समर्थित,पर्यवेक्षित और पर्यालोचित हो सके, इसके लिए ग्राम संसद की सभा बुलाना और उसे लोगों के अधिकार की रक्षा के लिए जागरूक पहरेदार की चेतना पैदा करना, जिससे भ्रष्टाचार न हो सके इसके लिए हमेशा जागरूक निगरानी करना। इसलिए इस राज्य के लोगों की हिस्सेदारी से जिस पंचायत को वाम मोर्चा ने चलाने की व्यवस्था की थी,वह गर्व, अधिकार, मर्यादा और आत्मसम्मान की थी।

पिछले 12 सालों से इस जनता की पंचायत को दक्षिणपंथी,बुर्जुआ राजनीति की विचारधारा की वाहक तृणमूल कांग्रेस परिचालित राज्य सरकार ने लूट की पंचायत में बदलना चाहा है। प्रशासन, पुलिस और एक हिस्से के लोगों को सीधे भ्रष्टाचार में शामिल किया है।जैसे ढांचागत कोई विकास नहीं हुआ है।वैसे ही हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार। और आज भाजपा परिचालित जो देश चला रहे हैं,वे या तो सभी लोककल्याणकारी परियोजनाओं में बजट की कटौती कर रहे हैं नहीं तो सभी परियोजनाओं को बंद करने के रास्ते पर चल रहे हैं।और तृणमूल कांग्रेस को इस रास्ते का हमसफ़र बनने के लिए पास में बैठा लिया है।

राज्य में भ्रष्टाचार का पहाड़,लुम्पेनीकरण और रोजगार विरोधी इस सरकार के खिलाफ हमारा संगठन लगातार आंदोलन कर रहा है। सड़कों पर पुलिस का बैरिकेड टूटा है,शासक का अहंकार और लूटने का साहस टूटा है। दूसरी तरफ राजनीतिक रूप से इस असमान लड़ाई के युद्ध क्षेत्र में टिके रहने के लिए तैयार रहने की कोशिश जारी है।

2022 में संगठन के मुखपत्र “जुवशक्ति” के 55 वें स्थापना दिवस पर कोलकाता के मौलाली युवा केन्द्र और जलपाईगुड़ी में,दो भागों में, “पंचायत चुनाव में नौजवानों की भूमिका” विषय पर आयोजित सेमिनार में राज्य के पूर्व विरोधी दल के नेता कामरेड सूर्यकांत मिश्र और “जुवशक्ति” पत्रिका के पूर्व संपादक कामरेड पलाश दास वक्ता थे। DYFI ने जनता की पंचायत बनाने के लिए पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू कर दी।


पूरे राज्य के प्रत्येक जिले में पंचायत कार्यशाला, जिला परिषद से ब्लाक, पंचायत के मुद्दों पर लड़ाई आंदोलन, जिसके फलस्वरूप एक उत्साह का माहौल बना,शासक की लूट के कारोबार पर जीवन के अनुभव से गहरा असंतोष, घृणा और आधिपत्य के खिलाफ गाँव के नौजवानों ने संगठित होना शुरू किया था। सांगठनिक तैयारी, राजनीतिक चेतना द्वारा एक जन वाहिनी तैयार हुयी। राज्य के विभिन्न इलाकों में पूरी चुनाव प्रक्रिया में बार- बार आम लोगों ने वामपंथ के प्रति आस्था रखकर शासक की आँखों में आँख डालकर हमले का प्रतिरोध करने के लिए संगठित प्रतिरोध की दीवार खड़ी कर दी। लड़ाई हुयी है,खून बहा है,सहयोद्धा शहीद हुए हैं,अभी भी बहुत से सहकर्मी अपने घरों से बाहर हैं, झूठे मामले में जेल या मुजरिम। लेकिन लड़ाई से हटे नहीं हैं। लड़ाई का अंत देखने के लिए टिके रहे हैं।इस बेपरवाह जिद्द,साहस ने पूरे संगठन को उत्साह से भर दिया है, इसके साथ अपने कन्धों को चौड़ा करने की जिम्मेदारी दी है।

जो लड़े,टिके रहे,उन सबको साथ लेकर एक कतार में चलना होगा। तुरंत संगठन के ढांचे में जगह देनी होगी,खुद जानना होगा,उनको भी बताना होगा। लड़ाई किसलिए ? जी -जान की लड़ाई क्यों ? हम क्या चाहते हैं? किसके लिए चाहते हैं ? किसके खिलाफ लड़ाई ? इस लम्बे रास्ते पर किनके साथ चलना होगा? क्यों चलना होगा ?कहाँ जागरूक रहना होगा ? यह क्यों, क्या,किस तरह ? इन सबका उत्तर जानना होगा।यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।नये आए साथियों का हाथ पकड़ना होगा।मजबूती के साथ हाथ को पकड़े रहना होगा। लड़ाई, आंदोलन, विचारधारा की लगातार चर्चा के माध्यम से अपने और सबकी चेतना का विकास करना होगा।
तभी समाज बदलने की लड़ाई जोरदार होगी। समाजवाद की स्थापना होगी।
यह एक विराट लम्बी और कठिन लड़ाई है।यह लड़ाई जिंदा रहने की लड़ाई है,इस लड़ाई को लड़ना होगा,इस लड़ाई को जीतना होगा।
इसलिए और एक साल बाद 23 जुलाई,2023 को 56 वें स्थापना दिवस पर पूर्व अखिल भारतीय महासचिव मोहम्मद सलीम, पूर्व राज्य सचिव आभास राय चौधरी और मजदूर नेता जियाऊल आलम के भाषण में इस समय वामपंथी नौजवानों को जिम्मेदारी, कर्तव्य के बारे में फिर से एक बार इस मोड़ पर राजनीति और विचारधारा की रोशनी में आगामी आंदोलन की दिशा ठीक करनी होगी।
हम लड़ेंगे साथी,
जिंदा रहने की लड़ाई में जीतेंगे।