“बदलती हुई फिज़ाओं के रुख़ में बदलते हैं लोग, देखा है मैंने धोखे खा कर भी संभलते हैं लोग,।


शेरो-ओ-शायरी के उस्ताद मिर्जा गालिब को पढ़ते-पढ़ते अचानक किसी अन्य शायर की लिखी यह दो पंक्तियां दिखी, पढ़ते ही चेहरे पर हल्की सी मुस्कान के साथ जहन में कुछ घटनायें ताजा हो गई। सोचा आप सभी के साथ साझा करूँ,शायद आपलोगों को पसंद आये। बात आज से करीब-करीब दस -ग्यारह वर्ष पहले की है। फूलन प्रसाद (काल्पनिक नाम) नामक एक शख्स, जो ई.सी.एल के अंतर्गत आने वाले कोलियरी में लोडर के पद पर कार्यरत थे और वहीं पास में ही कोलियरी क्वार्टर में रहते थे। चूँकि मेरा भी उसी जगह कोलियरी के क्वार्टर में आना- जाना था और उनकी उम्र भी मेरे पिता जी के समान ही थी सो मैं उन्हें फूलन चाचा कह संबोधित करता था। फूलन चाचा बड़े ही खुश मिजाज इंसान थे। उनकी ई.सी.एल में नौकरी कैसे हुई? इसकी भी एक कहानी है। वहाँ रहने वाले बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि फूलन के पिताजी भी ईसीएल में कार्यरत थे और कार्यरत अवस्था में ही बीमारी के कारण उनका देहांत हो गया था। फूलन को नौकरी पिताजी के देहांत हो जाने के कारण मिली।

क्योंकि ई.सी.एल में नौकरी कर्मचारी के देहांत हो जाने के उपरांत उनके आश्रित को नौकरी प्रदान करने का प्रावधान है। किन्तु फूलन चाचा के साथ नौकरी पाने के समय कुछ जटिलता तैयार हो गई थी। फूलन चाचा के पिताजी ने दो शादियां की थी। उनकी पहली पत्नी यानी फूलन चाचा की माता का देहांत हो चुका था किंतु उनकी दूसरी पत्नी और उनके दो बच्चे मौजूद थे। अब फूलन चाचा के पिताजी के देहांत के बाद जब नौकरी लेने की बात आई कि कौन नौकरी करेगा। कारण ई.सी.एल के नियमों के मुताबिक पहला हक उनकी दूसरी मां का बनता था उसके बाद फूलन चाचा का। फिर परिवार के लोगों तथा समाज के कुछ बड़े आपस में बैठ कर फैसला किया कि नौकरी फूलन को दिया जाय और जो भी रुपया-पैसा मिलेगा वह फूलन की दूसरी माँ को दिया जाय साथ ही फूलन प्रति माह कुछ आर्थिक सहायता अपनी सौतेली माँ को प्रदान करेगा। फिर नौकरी का आवेदन फूलन चाचा ने किया। किंतु फैसला लेने में देरी के कारण आवेदन करने में भी देर हुआ और ई.सी.एल के नियम अनुसार उनका नौकरी का आवेदन करने में देरी हुई ,जिसे ई.सी.एल की भाषा में “लेट क्लेम “कहा जाता है, के कारण उनके नौकरी के आवेदन पर ई.सी.एल प्रबंधन ने रोक लगा दिया। फिर श्री फूलन प्रसाद ने सीटू के नेताओं से संपर्क किया और सारी घटना को विस्तृत रूप से उनके सामने रखा। घटना सुन सीटू के नेताओं ने इस मामले को गंभीरता पूर्वक लिया और ई.सी.एल प्रबंधन पर उन्हें नौकरी प्रदान करने की मांग पर दबाव बनाना शुरू किया ,कारण उनकी नौकरी की मांग सरासर जायज थी, हाँ आवेदन करने में थोड़ा विलंब अवश्य हुआ था। कुछ दिनों के बाद सीटू नेता की कोशिशों के कारण ईसीएल प्रबंधन उन्हें नौकरी प्रदान करने के लिए बाध्य हुआ और वे ई.सी.एल में कार्यरत हुए। इसके बाद वे सीटू के सक्रिय सदस्य के रूप में काम करने लगे। फिर उनके साथ एक समस्या हुई ,उनके पिता के देहांत के बाद जिस क्वार्टर में रहते थे उसे छोड़ने की बात आई क्योंकि ई.सी एल  का नियम है कि अगर किसी कर्मचारी का देहांत हो जाता है तो  क्वार्टर खाली करना पड़ता है। फिर वह सीटू नेताओं के पास गए और अपनी बातों को उनके समक्ष रखा कि अब तो उन्हें नौकरी मिल गयी है, प्रबंधन मुझे आवास आवंटन के लिए बाध्य है ,तो मुझे मेरे पिताजी का ही आवास आवंटित किया जाए ,कारण मैं वहां कई वर्षों से रह रहा हूँ। फिर सीटू नेताओं ने प्रबंधन पर दबाव बनाकर फूलन चाचा को उसके पिताजी का ही आवास आवंटित करा दिया।

अब फूलन चाचा अपने पुराने क्वार्टर में ही रहने लगे और ड्यूटी भी करने लगे। रउन्होंने नौकरी की शुरुआत अंडर ग्राउंड लोडर के रूप में किया। यहाँ थोड़ी सी जानकारी आप लोगों को दे दूँ कि लोडर का काम होता है , टब गाड़ी में कोयला लोड करने का। इस काम को करने में काफी अधिक परिश्रम करना पड़ता है। यह काम बहुत ही मेहनत भरा होता है। दो – चार महीने लोडर का काम करने के पश्चात फूलन चाचा ने फिर सीटू के नेताओं से कहा कि लगता है अब मैं काम नहीं कर सकूंगा, यह काम बहुत ही कठिन है। मुझे काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। आप लोग मेरी अवस्था को समझिए और कुछ कीजिए ताकि मैं  अपना काम भी कर सकूं और अपने बाल बच्चे का पालन पोषण भी कर सकूँ। वे लोग फिर ई.सी.एल प्रबंधन के पास  गये और उनसे अनुरोध किया कि फूलन की शारीरिक अवस्था ठीक नहीं है ,उसे कुछ हल्का काम दिया जाए। प्रबंधन ने उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए फूलन चाचा को खदान के ऊपर ही किसी काम में लगा दिया।इसके बाद फूलन चाचा आराम से काम करते रहे। सी.आई.टी.यू भी काफी सक्रिय रूप से करते थे। मुझसे जब भी मिलते थे, काफी मजाकिया अंदाज में बातचीत किया करते थे। बाजार में मिलने पर बिना चाय पिलाये जाने नहीं देते थे। सब कुछ ठीक तरीके से ही चल रहा था।  2011में राज्य में तृणमूल की सरकार सत्ता पर काबिज हुई। साथ ही शुरू हुआ आतंक, हिंसा, सी.आई.टी.यू यूनियन ऑफिस को तोड़ना,उस पर कब्जा करना, यूनियन के कार्यकर्ताओं के ऊपर हमला इत्यादि जैसी घटनाओं का दौर। बहुत सारे मजदूर शासक दल के मजदूर यूनियन में नाम लिखाने को बाध्य हुए। कुछ लोग मजबूरी तो कुछ लोग झूठ-मूठ का बहाना बनाकर शासक दल के यूनियन में शामिल हो गए। फूलन चाचा के भी अंदाज कुछ बदले -बदले से नजर आने लगे। पहले कहीं भी मिलने पर दुआ सलाम, खैरियत का जिक्र करते थे ,मगर अब तो हमलोगों से बात करने में कतराने लगे। यहां फराज अहमद की लिखी दो पंक्तियां याद आ गई।”कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले लगोगे तपाक से ।ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो”।।


कुछ दिनों के बाद पता चला कि फूलन चाचा  शासक दल यानी तृणमूल की यूनियन में शामिल हो गए हैं और कह रहे थे कि सीटू ने मेरे लिए क्या किया है जो मैं उस यूनियन में रहूं। यही राग वह सभी के समक्ष अलापते थे तभी एक दिन एक बुजुर्ग ने मिर्जा गालिब की इन पंक्तियों को फूलन चाचा के समक्ष कहा “हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।         तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।” और कहा ,तुम्हें यह कहते जरा भी ग्लानि महसूस नहीं हो रही है कि सीटू ने तुम्हारे लिए क्या किया। फूलन तुम्हारी नौकरी, तुम्हारा क्वाटर, तुम्हें जिस काम में दिया गया था, वह तुम नहीं कर पा रहे थे फिर तुम्हें दूसरे हल्के में काम की व्यवस्था की और तुम कह रहे हो कि सीटू ने क्या किया। खैर जो भी हो तुम जानो या तुम्हारा काम जाने। इतना सुन फूलन चाचा हक्के बक्के रह गए।  फिर सीटू के सभी साथियों के साथ उन्होंने किसी प्रकार का संपर्क नहीं रखा, यहां तक कि बोलचाल भी बंद कर दिया। शासक दल की यूनियन करते करते कुछ साल बाद काम में गड़बड़ी के कारण एक दिन कोलियरी प्रबंधन ने उन्हें चार्जशीट के साथ सस्पेंड किया। अब फूलन चाचा के हाथ पैर फूलने लगे। वे दौड़कर शासक दल के नेताओं के पास गए और कहा कि कोलियरी प्रबंधन ने मुझे बेवजह ही सस्पेंड कर कई दिनों से बैठा कर रखा है,आप मदद करें । इस पर शासक दल के नेताओं ने कहा घबराने की बात नहीं है ,हमलोग एक दिन में ही तुम्हें ज्वाइन करा देगें। कई दिनों तक उनके चक्कर लगाने के बाद बड़ी मुश्किल से प्रबंधन ने उन्हें पेंडिंग इंक्वायरी कह ज्वाइन दिया। वे काम करने लगे इधर इंक्वायरी शुरू हुई। इंक्वायरी में दोष साबित होने के बाद फूलन चाचा का दो इंक्रीमेंट काट लिया गया। इस बात से फूलन चाचा बहुत ही आहत हुए और सोचने लगे कि सीटू करते आज तक मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। ये लोग कोलियरी के नियम कानून कुछ भी नहीं जानते। जिसमें मेरा दोष नहीं था उसमें मैं दोषी करार हुआ। इसके बाद फूलन चाचा का मोह शासक दल के यूनियन से टूटना शुरू हुआ। कुछ दिनों के बाद वे बीएमएस संगठन से जुड़ गए। बीएमएस करते हुए काम से रिटायर हुए। रिटायरमेंट के कुछ दिनों के पश्चात उनका पेंशन चालू हुआ। परंतु 1 या 2 वर्ष तक पेंशन मिलने के बाद अचानक उनका पेंशन बंद हो गया। अब फूलन चाचा फिर से बहुत परेशान हो गये। एक दिन परेशान फूलन चाचा चाय की दुकान पर बैठे हुए थे। मैं भी उसी रास्ते से गुजर रहा था।

अचानक वह मुझे आवाज लगाए, बेटा इधर आओ, चाय पी कर जाओ। मैं दंग रह गया कि इतने सालों बाद फूलन चाचा  मुझे क्यों बुला रहे हैं। मैं गया तो उन्होंने बैठने को कहा, बड़े ही संकोच के साथ बोले_ बेटा मुझे पेंशन मिलता था पर अचानक से बंद हो गया, क्या कारण है पता नहीं। मैं बोला कि अभी आप जिस  यूनियन के साथ जुड़े हैं उनके नेताओं को अपनी इस समस्या से अवगत करा उस समस्या का समाधान करने को कहिए । वह बोले, बेटा कई बार कह चुका हूं पर उन्हें फुर्सत ही नहीं है। तुम इस विषय में मेरी कुछ मदद कर सकते हो क्या? मैंने कहा- अपने पेंशन के सारे दस्तावेज को लेकर आइए, मैं देखता हूं। खबर लेकर देखा तो पता चला कि फूलन चाचा का जीवन प्रमाण पत्र जमा नहीं हुआ। जिसके कारण उनका पेंशन बंद हो गया था ।मैंने उनसे बैंक में पता लगाने की बात कही साथ ही वहां जीवन प्रमाण पत्र जमा देने की भी बात कही। कुछ दिनों के पश्चात उनका पेंशन फिर से चालू हुआ। एक दिन फिर  उसी चाय की दुकान पर फूलन चाचा से मुलाकात हुई। उस दिन उनसे बातचीत में मुझे उसी पुराने फूलन चाचा की झलक नजर आई। उन्होंने कहा कि मेरे पिता जी ठीक कहते थे कि”एक रोटी खाना मगर सीटू के साथ ही रहना” कारण वे ही मुसीबत में तुम्हारा साथ देगें। मैंने उनसे मजाक में फ़राज़ की लिखी दो लाइन कहा “दोस्ती अपनी भी असर रखती है फ़राज़ । 

बहुत याद आएँगे ज़रा भूल कर तो देखो ।।फूलन चाचा अपनी गलतियों पर काफी शर्मिंदा थे, उनके पास कहने को कोई अल्फाज नहीं थे। केवल इतना ही कहा कि और कहीं नहीं जाऊंगा चाहे जो हो जाए।  वे आज  हमारे साथ हैं। आज एक फूलन हमारे साथ आया है , ऐसे हजारों फूलन अभी हम से जुदा हैं । हमारी कोशिश होनी चाहिए हमसे बिछड़े उन सारे लोगों को कैसे हम अपने प्रिय संगठन सीटू के साथ जोड़ें, ताकि केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा मजदूरों पर किए जा रहे हमलों के खिलाफ एक जोरदार संघर्ष का आगाज किया जा सके।