अभी और एक साल का समय शेष रह गया है ,केन्द्र में भाजपा की सरकार को दस साल होने में। जनतंत्र में यही स्वाभाविक है कि जिसके पास संख्या बल होगा, सत्ता के नीति निर्धारण में उसी का शंखनाद बजेगा और पूरे देश पर भारी पड़ेगा। अब यह नीति देशवासियों के लिए आशीर्वाद होगी या अभिशाप, यह तजुर्बे के तहत तय होती है।

भाजपा की सरकार कुछ जनप्रिय नारों के आधार पर सत्ता में आई थी।

बहुत हुई मंहगाई की मार

अबकी बार मोदी सरकार

वास्तविक रुप में अगर देखा जाए तो पिछले नौ साल के पहले पेट या घर चलाने के लिए जो रोजगार एक आम हिन्दुस्तानी को करना पड़ता था, इन नौ सालों में उससे कई गुणा ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। भविष्य के लिए कुछ पैसा बचाने की कोई गुंजाइश नहीं है। रसोई गैस से लेकर पेट्रोल, डीजल, किरासन और गोलदारी(किराना) से लेकर दवा, स्कूल फीस, ट्रेन किराया सिर चढ़कर बोल रहा है। ऐसा दुःखद नजारा भी देशवासी देखे हैं कि खुद का खर्च चला पाने में असमर्थ एक हिन्दुस्तानी  अपनी मृत स्त्री की लाश ले जाने के लिए किराये की गाड़ी करने में असमर्थ हालात में लाश को अपने कंधे में उठाकर मीलों रास्ता पैदल चलने को मजबूर हुआ। कोरोना महामारी के समय ऐसी भयानक तस्वीर तो हमलोग बहुत देखे हैं और मौन साक्षी रहे हैं कि लाखों-लाख मजदूर, बच्चे महिलाएं किस तरह से सैकड़ों हजारों-हजार मील रास्ता लहुलुहान होकर भी पैदल तय किए हैं। रास्ते में पुलिस की लाठियां और गालियां भी मिली। इनसे बचने के उपाय स्वरूप रेल पटरी पर चल रहे मजदूर भाईयों के कटे और बिखरी लाशों से लहुलुहान हुई, पटरी पर पड़ी उनकी रोटियाँ उनके मौत की रूदाली गाती रही। सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और लोगों को ताली -थाली बजाने का आह्वान कर अपना कर्तव्य पूरा करने का एक निष्ठुर ढोंग किया। हमारे प्रधानमंत्री  बड़े बेशरम तरीके से यह भी कह बैठे कि “आपदा को अवसर में बदलना है”। उनकी इस उक्ति का पूँजीवाद ने जमकर लुत्फ उठाया।

सबका साथ, सबका विकास।

कॉर्पोरेट का तलवा चाटते हुये भाजपा सत्ता में आई है। अब तो लाज़मी है कि कॉर्पोरेट की सेवा इनका प्रधान और प्रथम कार्य होगा। अब ऐसा करते हुए सारे देशवासी को कुछ भी भुगतना पड़े, ये और बात है। बहुसंख्यक लोगों के पास भले ही एक फूटी कौड़ी ना हो, पर बैंकों में रखे देशवासियों के खून पसीने की कमाई का मजा नीरव मोदी से लेकर विजय माल्या, मेहुल चौकसी से लेकर अदानी अम्बानी लूट रहे हैं। इनके लाखों-लाख करोड़ों-करोड़ के ऋण और कर्ज वेभ ऑफ किए जा रहे हैं।

आज हाल यह है कि घर के फ्रीज में बीफ रखने के संदेह में अखलाख अहमद को जान से मार दिया जाता है, वहीं बीफ एक्सपोर्ट में भारत आज विश्व में एक नम्बर बन जाता है। गौरक्षा के तथाकथित नेता, उत्तर प्रदेश के उन्नाव से भाजपा सांसद साक्षी महाराज के संसदीय क्षेत्र में ही देश की अन्यतम सबसे बड़ी बीफ फैक्ट्री चल रही है।

ऐसा नहीं है कि हमारे राज्य पश्चिम बंगाल की स्थिति कुछ भिन्न है। दिखावे के तौर पर भाजपा का विरोध करने वाली टीएमसी सरकार के शासन काल में सुदीप्त गुप्ता से लेकर अनीस खान, स्वपन कोले से लेकर मोईदुल इस्लाम मिद्या के हत्याकांड का ना तो इंसाफ हुआ और ना ही हत्यारों को सजा हुई। भूतपूर्व विधायक सह मजदूर नेता दिलीप सरकार, भूतपूर्व विधायक प्रदीप ता, लोक कलाकार कमल गायेन, निर्गुण दुबे, भीमराज तिवारी, अर्पण मुखर्जी जैसे अनगिनत हत्याओं का इंसाफ होना बाकी है। यहां तक कि दरिन्दगी की शिकार छह साल की बच्ची (बर्नपुर) पुष्पा ठाकुर की जान लेने वाले दरिन्दे की भी सटीक शिनाख्त और सजा नहीं हुई है।

अब ऐसा नहीं है कि इन दोनों सरकारों के संचालन और रवैए में सिर्फ समानता है, बल्कि ये एक ही थाली के चट्टेबट्टे हैं या यूं कहें कि एक ही खेत की मूली हैं। दोनों सरकारों की आर्थिक नीति और लूट करने की नीति तकरीबन एक ही है। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि बिना क्रिकेट का गेंद या बल्ला छुए देश के गृह मंत्री श्री अमित शाह का बेटा बीसीसीआई का सचिव बन जाता है और बिना छात्र किसान या मजदूर का कोई आन्दोलन किए मुख्य मंत्री  ममता बनर्जी का भतीजा पश्चिम बंगाल सरकार का सेकण्ड मैन बन जाता है। भाई-भतीजावाद का इससे बड़ा सरकारी नमूना और क्या हो सकता है?

सरकारी नौकरी का चुनावी जुमला

भाजपा का सालाना दो करोड़

टीएमसी का सालाना दो लाख

सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा का चुनावी ढकोसला था सालाना दो करोड़ नौकरी का वादा और टीएमसी का चुनावी नौटंकी था सालाना दो लाख नौकरी का वादा। ऐसे -ऐसे चुनावी जुमलों की चकाचौंध में इनलोगों ने सत्ता तो हासिल कर लिया, लेकिन बेरोज़गारों के पेट की आग को ठंडक नहीं पहुंची। देश के भविष्य और नौजवानों के साथ दोनों ने गंदा और भद्दा मजाक किया। तकनीकी और पारम्परिक दोनों तरह के शिक्षितों का आज दम घुट रहा है। दिशाहीन युवा पीढ़ी एक डर और खौफ के माहौल में बेरोजगारी से उबरने के लिए जरूरत से ज्यादा इनपर निर्भर है और इन दोनों सरकारों की यही रणनीति है कि देश और राज्य में यह डर का माहौल बना रहे और युवा पीढ़ी ऐसी ही जिन्दगी जीने को मजबूर हो जाए।

भाजपा का अच्छे दिन

टीएमसी का परिवर्तन

भाजपा का चुनाव पूर्व बड़ा ऐलान था कि अच्छे दिन आने वाले हैं। अच्छे दिन का मतलब पिछले दिनों से बेहतर उज्जवल रोजगारमंद एक खुशहाल ज़िन्दगी देशवासियों के नाम करने की प्रतिज्ञा करते हुए इस सरकार का जन्म हुआ और आज यह आलम है कि ना ही आर्थिक रूप से, ना ही शिक्षा के मामले में और ना ही चिकित्सा के क्षेत्र में जिन्दगी की ज़रूरतें हों या सामाजिक रस्म, अधिसंख्यक लोग खरा नहीं उतर पा रहे हैं।

एक ही बात हमारे बंगाल पर भी लागू होता है, परिवर्तन के नाम पर सत्ता में जन्मी इस सरकार ने तो नाक में दम कर रखा है। लूटपाट से लेकर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी से लेकर घोटालेबाजी तक यह सरकार ऐसी जर्जर अवस्था में पहुंच चुकी है कि ऐसी हालात से न तो खुद उबर पा रही है और न ही लोगों को उबरने दे रही है। नौकरी की परीक्षा में योग्य बेरोज़गार पुलिसिया लाठी, सरकारी केस का शिकार हो रहे हैं और शासक दल के नेताओं को घूस देकर अयोग्य सरकारी नौकरी कर रहे हैं। अदालत के हस्तक्षेप, वामपन्थी वकीलों की कानूनी लड़ाई और वामपन्थी छात्र नौजवानों के संघर्ष का नतीजा है कि ऐसे मामले आज लोगों के सामने आ रहे हैं तथा इंसाफ की एक उम्मीद भी जगी है।

हास्यास्पद बात यह है कि दोनों सरकारें जब भी किसी आरोप में घिरता हुआ खुद को पाती हैं , तो एक सा प्रत्यारोप का सहारा लेती हैं – भाजपा कहती है कि कांग्रेस ने 70 सालों में कुछ नहीं किया और टीएमसी का कहना है कि वाम मोर्चा सरकार ने 34 सालों में कुछ नहीं किया। पिछली सरकारों पर इल्ज़ाम देकर दरअसल हमारे देश के वैज्ञानिक, डाक्टर, इन्जीनियर, शिक्षक, प्रोफ़ेसर, किसान, मजदूर सबका अपमान करते हैं। अंतरिक्ष विज्ञान से लेकर चिकित्सा के मामले में, दुग्ध उत्पादन से लेकर कृषि के मामले में आत्मनिर्भर बनने तक, गूगल माइक्रोसॉफ्ट से लेकर परमाणु ताकत के मामले में हमारे भारत ने पिछले 70 सालों में बहुत ऊंचाई तक का मुकाम हासिल किया है।

पश्चिम बंगाल की बात करें तो ३४ सालों में लाल झण्डे की सरकार ने पंचायती राज से लेकर भूमिहीनों को भूमि आवंटन, कम्प्यूटर और इलेक्ट्रानिक के मामले में सेक्टर फाईव से लेकर औद्योगिक नगरी हल्दिया कायम करने तक, गांव कस्बों में प्राथमिक विद्यालयों से लेकर इन्जीनियरिंग कॉलेज बनाने तक, नहरों का निर्माण कर कृषिकर्म को सुदृढ़ करने से लेकर बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए बक्रेश्वर ताप विद्युत केन्द्र का निर्माण करने तक और सर्वोपरि राज्य में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम रखने की एक मिसाल कायम की है।

हम यह दावा नहीं करते कि हमने सबकुछ हासिल कर लिया है, लेकिन इस झूठ का भी मौन रहकर समर्थन नहीं कर सकते कि इस समयकाल में कुछ भी नहीं हुआ।

आज देश का कोई ऐसा राज्य नहीं है अथवा पश्चिम बंगाल में ऐसा कोई जिला नहीं है जहाँ साम्प्रदायिक दंगे या तनाव नहीं हुआ हो। राज्य भर में भाजपा व टीएमसी नेता ,मंत्री ,सांसद, विधायकों का दलबदल यह साबित करता है कि नीति इनके लिए कोई मसला नहीं है, ये नीतिहीन लोग अपने स्वार्थ की रक्षा के लिए राजनीति को धंधा बना लिए हैं।

राजनैतिक सिद्धांत और लाभजनक बैंक, बीमा, रेल आदि राष्ट्रीय संपत्ति औने पौने भाव में बेचकर, बंद कर, नष्ट कर, अपनी लफ्फाजी में मस्त हैं। केन्द्र हो या राज्य हो, देशहित में न तो कोई औद्योगिक नीति है और न ही शिक्षा नीति है। इनका एक भी नीति ऐसी नहीं है जो कार्पोरेट के अलावा देशवासियों के हित में हो।

अंततः जनता इनसे निजात चाहती है, मुक्ति चाहती है।  किसी भी कीमत पर एक सही दिशा में पहल कर, जनता को एकताबद्ध कर इन आत्म-विज्ञापन में करोड़ों खर्च करने वाली जनविरोधी सरकारों को उखाड़ फेंकने की जरूरत है, ताकि आम जनता राहत की सांस ले सके।