अशफ़ाक़ उल्ला और राम प्रसाद बिस्मिल को हम सब काकोरी कांड के शहीदों के नाम से जानते हैं।दोनों ने ही मिलकर आजाद भारत का सपना देखा और उसे सपने को पूरा करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी।अशफ़ाक़उल्ला और राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती के बारे में भी हम सब जानते हैं।
वर्तमान समय में धर्म और जातिवाद लोगों के दिलों दिमाग में हावी हो चुका है।आज सत्ता के लालची लोगों द्वारा आम लोगों के दिमाग में एक दूसरी जाति , धर्म के प्रति नफरत भरी जा रही है।आज के समय में भारत के इन वीर सपूतों के बारे में पढ़ने और जानना जरूरी इसलिए भी है कि उन्होंने न सिर्फ भारत को अंग्रेजों से आजाद करवाने में योगदान दिया बल्कि उसके साथ-साथ उन दोनों की गहरी दोस्ती ने धर्म और जाति की तमाम दीवारें तोड़कर हिंदू मुस्लिम एकता की नींव भी रखी।
लेखक सुधीर विद्यार्थी अपनी पुस्तक ‘अशफ़ाक़ उल्ला और उनका युग’ में लिखते हैं —“आर्यसमाजी विचारों के रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाकउल्ला खान की मित्रता और मातृभूमि की आजादी के लिए उनका एक साथ शहीद हो जाना,सांप्रदायिक सद्भाव और हमारे इतिहास की बहुत बड़ी विरासत है जिसे जानना बहुत जरूरी है”।
बिस्मिल की कविताएं और उनकी बहादुरी के किस्से सुन सुनकर अशफ़ाक उनसे बहुत प्रेरित थे। अशफ़ाक ने मन ही ठान लिया कि उन्हें राम प्रसाद बिस्मिल से मिलना है। राम प्रसाद बिस्मिल शाहजहांपुर में एक मीटिंग में भाषण देने आए हुए थे ।जब यह बात अशफ़ाक को पता चली तो वह भी वहां पहुंच गए ।मीटिंग खत्म होते ही बिस्मिल से उनकी मुलाकात हुई फिर धीरे-धीरे ऐसी दोस्ती हुई जो उनकी मौत तक कायम रही।
अशफ़ाक़ पांच वक्त नमाजी थे और रामप्रसाद बिस्मिल आर्य समाज के प्रवक्ता थे। शाहजहांपुर के आर्य समाज मंदिरों में जहां रामप्रसाद बिस्मिल यज्ञ करते थे तो वहीं यज्ञशाला के पास ही अशफ़ाक़ उल्ला नमाज अदा करते थे।दोनों के अलग कौम होने के बावजूद देश प्रेम की डोर ने उन्हें एक कर रखा था। उन्होंने जात-पात और धर्म की रेखा को पार कर सद्भावना और भाईचारे की नींव रखी ताकि वह अपने देश को आजाद देख सकें।
1922 में जब चौरी-चौरा कांड हुआ और इसके बाद गांधी जी का असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला बहुत से युवाओं को नागवार साबित हुआ। इन युवाओं में राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ भी थे। तब उन्होंने फैसला किया कि अब ब्रिटिश शासन के खिलाफ हथियार के जरिए ही हम आज़ाद हिंदुस्तान का सपना देख सकते हैं।हथियार खरीदने के लिए पैसों की जरूरत थी। रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ ने आठ अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काकोरी में सरकारी खजाने की लूट की योजना बनाई।इस पूरे मिशन का नेतृत्व कर रहे थे राम प्रसाद बिस्मिल। क्रांतिकारियों के इस कदम से ब्रिटिश सरकार बौखला गई। सरकार ने क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए अलग-अलग जगह पर छापे मारकर सबको पकड़ लिया। काकोरी कांड में अशफ़ाक़ उल्ला,राम प्रसाद बिस्मिल,राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गईI
रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाकउल्ला दोनों ही उच्च श्रेणी के शायर व कवि थे। अशफ़ाक उल्ला ‘वारसी और हसरत’ उपनाम से लिखते थे। उनकी रचनाओं ने उनके बाद के दौर के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया। दोनों ही अपने महान साहस व दृढ़ निश्चय के लिए विख्यात थे। राम प्रसाद बिस्मिल अशफ़ाकउल्ला को अपना छोटा भाई मानते थे और अशफ़ाक उल्ला भी उनको बड़े भाई का ही दर्जा देते थे। आमतौर पर दोनों की मुलाक़ात आर्य समाज के मंदिर में होती थी।अशफ़ाक के आर्य समाज मंदिर जाने पर उनके परिवार को आपत्ति थी,पर अशफ़ाक इन सब बातों की परवाह नहीं करते थे।
रामप्रसाद बिस्मिल कहते थे के सबको आश्चर्य था कि एक कट्टर आर्यसमाजी और मुसलमान का मेल कैसाI
मैं मुसलमानों की शुद्धि करता था।आर्य समाज मंदिरों में मेरा निवास था। मेरे कुछ साथी तुम्हें मुसलमान होने के कारण घृणा की दृष्टि से देखते थे। हिंदू मुस्लिम झगड़ा होने पर तुम्हारे मोहल्ले के सब कोई तुम्हें खुल्लम-खुल्ला गालियां देते थे,काफ़िर के नाम से पुकारते थे,पर तुम कभी उनके विचारों से सहमत नहीं हुए ।सदैव हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्ष मे रहे। तुम एक सच्चे मुसलमान और सच्चे देश भक्त थे।
एक बार मुस्लिम समाज के दर्जनों लोग आर्य समाज के मंदिर में राम प्रसाद बिस्मिल को मारने पहुँच गए थे क्योंकि उन्हें लगता था कि बिस्मिल ने अशफ़ाक को बरगलाया है। जब यह घटना हुई अशफाक भी वहीं मौजूद थे। उन्हें जब पता चला तो वह मंदिर के मुख्य द्वार पर किसी दीवार की तरह खड़े हो गए। उन्होंने कहा कि बिस्मिल को हाथ लगाने से पहले सभी को मुझसे निपटना होगा। अशफ़ाक के तीखे तेवरों को देखकर भीड़ को लौटने को मजबूर होना पड़ा।
उनकी अटूट दोस्ती के ऐसी अनेक उदाहरण मौजूद हैं। एक बार अशफ़ाक उल्ला को हृदय – कंप का दौरा हुआ।वह अचेत हो गए।अशफ़ाक को कई वैद्य-हकीमों को दिखाया पर दवाइयां असर नहीं कर रही थी। अशफ़ाक बिस्तर पर पड़े राम-राम कह रहे थे।तब एक व्यक्ति ने कहा कि यह पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को याद कर रहे हैं। जब पंडित जी आए तो उनकी एक आवाज़ सुनकर ही अशफ़ाक उल्ला बैठ गए। धीरे-धीरे अशफ़ाक के स्वास्थ्य में सुधार हो गया।
एक समय ऐसा था जब विरोधी शासकों द्वारा आज़ादी के आंदोलन को बाधित करने के लिए हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने के कुप्रयास हो रहे थे। ऐसे समय में रामप्रसाद और अशफ़ाक की दोस्ती हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में बहुत लोकप्रिय हुई।काकोरी कांड में गिरफ्तारी के बाद अशफ़ाक को इकबाली गवाह बनाने के अनेक प्रयास किए गए। मि . ऐनुद्दीन ने उन्हें यह समझाने की बहुत कोशिश की कि वह हिंदुओं का षड्यंत्र है और रामप्रसाद बिस्मिल हिंदू राज के लिए लड़ रहे हैं और तुम मुसलमान होकर झांसे में कैसे आ गए ? पहले तो अशफ़ाक उनकी बात सुनते रहे पर जब उन्होंने आगे बढ़कर क्रांतिकारियों के लिए कुछ उल्टा सीधा कहा तो अशफ़ाक बोले -“यह झूठ है कि पंडित राम प्रसाद हिंदू राज के लिए लड़ रहे हैं। पर यदि ऐसा है भी,तो हिंदू राज किसी भी तरह ब्रिटिश राज से अच्छा ही होगा।”
प्रारंभ में बिस्मिल को अशफाक पर ज्यादा भरोसा नहीं था परंतु अशफाक ने अपनी नेकदिली और दृढ़ निश्चय के बल पर बिस्मिल का विश्वास पूर्ण रूप से अर्जित कर लिया। दोनों में एक दूसरे के प्रति अनन्य स्नेह था। बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में अशफ़ाक के बारे में लिखा है,” बहुधा मैंने और तुमने (अशफ़ाक) एक ही थाली में भोजन किया। मेरे हृदय से यह विचार ही जाता रहा कि हिंदू और मुसलमान में कोई भेद है। तुम मुझ पर अटल विश्वास तथा प्रीति रखते थे ।अंत में इस प्रेम प्रीति तथा मित्रता का परिणाम क्या हुआ ,मेरे विचारों के रंग में तुम भी रंग गए। तुम भी एक कट्टर क्रांतिकारी बन गए। मुझे यदि शांति है तो यही कि तुमने संसार में मेरा मुख उज्जवल कर दिया। अदालत ने तुमको मेरा लेफ्टीनेंट ठहराया और जज ने मुकदमे का फैसला लिखते हुए तुम्हारे गले में जयमाला (फांसी की रस्सी) पहना दी।
बिस्मिल और अशफ़ाक की दोस्ती धार्मिक प्रतिबद्धताओं की विभिन्नता होते हुए भी,मित्रता और आपसी विश्वास की मिसाल है । देश के प्रति अनन्य प्रेम और भारत की स्वाधीनता के महान लक्ष्य के बीच उनकी धार्मिक वैचारिकता कभी आड़े नहीं आई। आज जो भाजपा सरकार देश में चल रही है वह रोजगार, स्वास्थ्य, महंगाई और देश के अन्य ज्वलंत मुद्दों के मोर्चे पर इस सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए देश में धर्म के नाम पर हिंसा करवा रही है ।आज देश के युवाओं को भारत के इन वीर सपूतों से प्रेरणा लेनी चाहिए और धर्म ,संप्रदाय,पंथ और जाति के संकुचित दायरे से बाहर निकलकर देशप्रेम के प्रति अनन्य भाव रखना चाहिए क्योंकि देश से बड़ा कुछ भी नहीं है।