” भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज” पुस्तक के सम्पादक प्रो .चमन लाल ने लिखा है – “ भगत सिंह का लेखन अभी तक जिन पुस्तकों में संकलित हुआ है , उनमें दो स्वतन्त्र पुस्तकें हैं – भूपेन्द्र हूजा द्वारा संपादित ‘ एक शहीद की जेल नोटबुक’ तथा डेन ब्रीन की आत्मकथा का भगत सिंह द्वारा किया हिंदी अनुवाद – यह पुस्तक भगत सिंह के जीवन काल में छपी थी | ‘ एक शहीद की जेल नोटबुक’ पहली बार 1993  में पुस्तकाकार रूप में जयपुर से अंग्रेजी में मूल रूप में प्रकाशित हुई , उससे पहले भूपेन्द्र हूजा ने ही 1991 से इसे अपनी मासिक पत्रिका ‘ इंडियन बुक क्रानिकल’ में कई महीने तक धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया | बाद में डायरी के हिंदी , पंजाबी व संभवत : अन्य एकाध भारतीय भाषा में अनुवाद प्रकाशित होने शुरू हुए |”

भगत सिंह के लेखन संबंधी शिव वर्मा व कुछ अन्य साथी जेल में चार पुस्तकों के भगत सिंह द्वारा लिखे होने , उनकी पांडुलिपियाँ जेल से बाहर भेजे जाने या फिर रहस्यमय ढंग से उन पांडुलिपियों के गायब होने की चर्चा करते हैं | इन चार पांडुलिपियों के शीर्षक इस प्रकार बनाये गए हैं –

1. समाजवाद का आर्दश

2. आत्मकथा

3. भारत में क्रांतिकारी आन्दोलन का इतिहास

4. मौत के दरवाजे पर

आगे सम्पादक प्रो. चमनलाल ने लिखा है – “ विचित्र बात  यह है कि भगत सिंह की 1993 में प्रकाशित ‘ एक शहीद की जेल नोटबुक’ की चर्चा किसी ने नहीं की | 1987 में संभवत: पहली बार मैंने भगत सिंह पर लिखे समाचार पत्रों में अपने लेखों में इस नोटबुक की ओर ध्यान आकर्षित करना शुरू किया जिसे हूजा जी ने प्रकाशित नोटबुक की भूमिका में भी उध्दृत किया है | क्योंकि दिल्ली में नेहरू मेमोरियल म्यूजियम लायब्रेरी (तीन मूर्ति ) में इसकी एक फोटोप्रति भगत सिंह के भाई कुलबीर सिंह के परिवार द्वारा प्रकाशित न करने की शर्त पर रख दी गई थी और मैंने इसके व्यापक नोट्स 1984 – 85 के दौरान लिए थे , जिन्हें मैं भगत सिंह पर अपने लेखों में उध्दृत करता था | हैरानी की बात है कि भगत सिंह के शहादत के साठ साल बाद तक न भारत सरकार , न भगत सिंह के परिवार के सदस्यों , जिनमें से कईयों के पास इस नोटबुक की प्रति थी , ने इसे छपवाने और न ही भगत सिंह के साथियों या आधुनिक भारत के प्रतिष्ठित इतिहासकारों – विपन चन्द्र , सुमित सरकार आदि को इसकी प्रति ही देने की कोशिश की | शिव वर्मा भी इस नोटबुक से अनभिज्ञ थे, यह हैरानीजनक है |”

पंजाब और हरियाणा सरकारों के सूचना विभागों ने नोटबुक का पंजाबी व हिंदी अनुवाद सहित बिना मूल्य प्रकाशन भी कर दिया है | भगत सिंह की जेल नोटबुक बंगला भाषा में 2012 में नेशनल बुक एजेंसी से प्रकाशित हुई है | अब चूँकि अंग्रेजी भाषा में भी भगत सिंह के अनेक दस्तावेजों का प्रकाशन उपलब्ध है , अत: विदेशी विश्वविद्यालयों में भी भगत सिंह पर अनेक स्तरों पर शोध होने लगा है | बिडम्बना यह है कि लखनऊ या मेरठ – आगरा आदि विश्वविद्यालयों में भगत सिंह पर पी. एच. डी के लिए शोध हिंदी भाषा में संपन्न हुई , लेकिन हिंदी में प्रकाशित दस्तावेजों में विश्वविद्यालयों की मुख्य धारा की भाषा अंग्रेजी में शोध के काबिल नहीं समझा गया |

   भगत सिंह की जेल नोटबुक बांग्ला भाषा में 2012 में नेशनल बुक एजेंसी से प्रकाशित हुई है| भगत सिंह के जेल नोटबुक में विश्व भर के 107 लेखकों व 43 पुस्तकों के शीर्षक दर्ज हैं | दो रिपोर्टों – मोंटफोर्ड रिपोर्ट व साईमन रिपोर्ट का भी जिक्र है | किताबें 43 से कहीं अधिक पढ़ी गयी हैं , जिन लेखकों व पुस्तकों के नाम दर्ज हैं , वे भी भगत सिंह के विचारधारात्मक विकास को स्पष्ट करने वाली हैं | लेखकों में मार्क्स , एंगेल्स , लेनिन त्रात्स्की , टामस पेन, वेरा फिगनर , बुखारिन कार्ल कटस्की , एमर्सन , टामस हाब्स , रूसो , सुकरात , प्लेटो , अरस्तू , मिल फुरिए , ए. पी . क्यूरस , सेनेको , देकार्त , मेकियावाली , हाब्स , जान लॅाक, सिप्नोजा , दिदेरो , राब्सपियर , दास्तोव्स्की , गोर्की , उमर खय्याम , इब्सन , वर्डसवर्थ , टेनिसन , टैगोर , जैक लन्दन , कार्लाइल , विपन चंद्रपाल , चिरोल , मदन मोहन मालवीय , महात्मा गाँधी , बारीन्द्र घोष , माइकल ओडवायर आदि शामिल हैं | 

बचपन से ही भगत सिंह को किताबों का जुनून रहा था | ‘पढ़ाई’ एक ऐसा शब्द था जो हर समय उनके दिमाग में गूँजता रहता था | ‘पढ़ाई’ – ताकि वे अपने विरोधियों के तर्कों का जवाब दे सकें | ‘पढ़ाई’ ताकि वे क्रान्ति की अपनी राह को सही ठहरा सकें | ‘पढ़ाई’ ताकि वे भारत की युगों पुरानी व्यवस्थाओं को बदलने के तरीके सोच सकें | जेल को उन्होंने लायब्रेरी व प्रयोगशाला में बदल दिया | जेल में उन्होंने जितनी भी किताबों का अध्ययन किया उसे अपनी कॅापी में नोट करते गए जो इस प्रकार है |

महान गणितज्ञ और दार्शनिक बट्रेंड आर्थर विलियम रसेल ने ‘धर्म’ के बारे में क्या लिखा था | उसे नोट करते हुए भगत सिंह ने लिखा है ——-“ धर्म के प्रति मेरा अपना दृष्टिकोण वही है जो ल्युक्रेतियस का है | मैं इसे भय से पैदा हुई एक बीमारी के रूप में , और मानव जाति के लिए एक अकथनीय दुःख के रूप में मानता हूँ | लेकिन , मैं इससे इंकार नहीं कर सकता कि इसने सभ्यता में कुछ योगदान भी किया है | इसने आरंभिक काल में पंचांग – निर्धारण में मदद की और इसी के चलते मिस्र के पुरोहितों ने ग्रहणों का लेखा – जोखा इतनी सावधानी के साथ रखा कि बाद में वे इनके बारे में भविष्यवाणी कर सकने में समर्थ हो गये | इन दो सेवाओं  को तो मैं मानने के लिए तैयार हूँ लेकिन और किसी के बारे में मैं नहीं जानता |”

कॅापी के पन्ने पलटते – पलटते भगत सिंह का ध्यान अचानक उस पंक्ति पर गयी जिसे उन्होंने लाजपत राय के किसी लेख से नोट किया था ——-“ विदेशी प्रजा पर कोई भी शासन इतना कठोर और इतना निर्मम नहीं होता जितना कि प्रजातंत्र |” यह सच ही था | अगर प्रजातांत्रिक ग्रेट ब्रिटेन आजादी के लिए लड़ने वालों पर इतनी उद्दंडता से झूठे मुकदमे चला सकता था तो वह किसी तानाशाही से कहीं ज्यादा बुरा था | उसे उन्हें फाँसी पर लटकाने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि आजादी उनका जन्मसिद्ध अधिकार था | ‘भारत में ब्रिटिश शासन’ शीर्षक से डा. रथफोर्ड ने क्या लिखा था , उसे अपनी कॅापी में नोट करते हुए भगत सिंह ने लिखा है ——“ भारत में ब्रिटिश शासन जैसे चलाया जा रहा है ,वह दुनिया में सरकार की सबसे निकृष्ट और सबसे अनैतिक प्रणाली – एक राष्ट्र द्वारा दूसरे का शोषण – है |” थॅामस पेन की कृति ‘ द राइटस आफ मैन’ में “प्राकृतिक और नागरिक अधिकार ” के बारे में नोट करते हुए भगत सिंह ने लिखा है ——“ मनुष्य ने समाज में प्रवेश इसलिए नहीं किया कि वह पहले से भी बदतर हो जाये , बल्कि इसलिए कि उसके अधिकार पहले से बेहतर ढंग से सुरक्षित हों | उसके प्राकृतिक अधिकार ही उसके सभी नागरिक अधिकारों की आधारशिला हैं | प्राकृतिक अधिकार वे हैं जो मनुष्य के जीने के अधिकार से सम्बंधित हैं (बौद्धिक – मानसिक आदि )| नागरिक अधिकार वे हैं जो मनुष्य के समाज का एक सदस्य होने से सम्बंधित हैं |”  राबर्ट जी. इंगरसोल के ‘ मजदूर का अधिकार’ शीर्षक को भगत सिंह ने अपनी कॅापी में नोट किया, जो इस प्रकार थी ———“ जो कोई भी कठिन श्रम से कोई चीज पैदा करता है ,उसे यह बताने के लिए किसी खुदाई पैगाम की जरुरत नहीं कि पैदा की गई चीज  पर उसी का अधिकार है |” जेम्स रसेल लॅावेल की कविता ‘ मुक्ति’ को भगत सिंह ने नोट करते हुए लिखा है —— “क्या है वह सच्ची मुक्ति , जो तोड़े /जंजीरें बस अपनी खातिर / और भुला दे संगदिल होकर / कि मानवता का कर्ज है हम पर ? / सब जंजीरें , जो पहने हैं अपने भाई ,/  भाव और कर्म से लगकर / हों औरों की मुक्ति में तत्पर |” किताबों के अच्छे अंशों और पंक्तियों को वे अपनी डायरी में नोट करते रहते थे | एक दिन अपनी कॅापी में फ्रांसिस्को फेरेर की ‘क्रांतिकारी की वसीयत’ शीर्षक किताब से यह अंश नोट करते हुए भगत सिंह ने लिखा है ——“ मैं अपने दोस्तों से यह भी कहना चाहूँगा कि वे मेरे बारे में कम से कम चर्चा करेंगे या बिलकुल ही चर्चा नहीं करेंगे , क्योंकि जब आदमी की तारीफ होने लगती है तो उसे इंसान के बजाय देवप्रतिमा – सा बना दिया जाता है और यह मानव जाति के भविष्य के लिए बहुत बुरी बात है …..| सिर्फ कर्मों पर ही गौर करना चाहिए , उन्हीं की तारीफ या निंदा होनी चाहिए , चाहे वे किसी के द्वारा किए गए हों | अगर लोगों को इनसे सार्वजनिक हित के लिए प्रेरणा मिलती दिखाई दे , तो वे इनकी तारीफ कर सकते हैं लेकिन अगर ये सामान्य हित के लिए हानिकारक लगें , तो वे इनकी निंदा भी कर सकते हैं , ताकि फिर इनकी पुनरावृत्ति न हो सके | मैं चाहूँगा कि किसी भी अवसर पर , मेरी कब्र के निकट या दूर , किसी भी किस्म में राजनीतिक या धार्मिक प्रदर्शन न किए जाएँ , क्योंकि मैं समझता हूँ कि मर चुके के लिए खर्च किए जाने वाले समय का बेहतर इस्तेमाल उन लोगों की जीवन दशाओं को सुधारने में किया जा सकता है , जिनमें से बहुतेरों को इसकी भारी आवश्यकता है |”

भगत सिंह का विश्वास था कि और लोग आगे आएँगे जो देश को गुलामी और शोषण की जंजीरों से मुक्त करवाने के अपने तरीके और रास्ते तलाशेंगे | यह संघर्ष अलग – अलग समय में अलग – अलग रूप लेता रहेगा | यह एक खुला संघर्ष भी हो सकता था और गुप्त भी ,आन्दोलनवादी भी हो सकता था और हिंसक भी | लेकिन युद्ध जारी रहेगा , जब तक कि मौजूदा सामाजिक व्यवस्था की जगह एक नई  बेहतर और शोषणरहित सामाजिक व्यवस्था लागू नहीं हो जाती | भगत सिंह ने अपनी कॅापी निकाली और कुछ दिन पहले प्रसिद्ध अंग्रेज कवि लार्ड बायरन की ‘ द प्रिजनर’ शीर्षक से नोट की गई पंक्तियों को पढ़ने लगे ——“ घुटन होती है इस नीची , गंदी छत के नीचे ,/निचुड़ती जा रही है मेरी ताकत साल – दर साल / उत्पीड़ित करते हैं मुझे – यह पथरीला फर्श ,/ यह लौह – जंजीरों से बँधी मेज / यह खाट , यह कुर्सी , बँधी हुई जंजीर से /………खुद को बस एक लाश ही समझा जा सकता है |” 

‘ इंग्लैण्ड की स्थिति की समीक्षा’ शीर्षक फ्रायर आफ वाट टेलर्स रिवेल  के किसी किताब की पंक्तियों को नोट करते हुए भगत सिंह ने लिखा है —–“ वे जिन्हें हम लार्ड कहते हैं , किस अधिकार से हमसे महान हैं ? वे क्यों हमें भू – दास बनाए हुए हैं ? अगर हम सभी एक ही बाप और माँ , आदम और हौव्वा की संताने हैं तो यह कैसे कहते हैं या साबित करते हैं कि वे हमसे महान या बेहतर हैं ? अगर वे अपने फायदे के लिए हमसे मेहनत नहीं करवाते तो वे अपनी शान – शौकत में क्या खर्च करते ? वे खुद तो मखमल पहनते हैं …..जबकि हम चिथड़े लपेटे रहते हैं |……..यह हमारी मेहनत ही है जिसके बूते पर वे राज कर रहे हैं |” लेनिन की रचना ‘ सर्वहारा क्रान्ति और गद्दार काउत्स्की’  ‘बुर्जुआ जनतंत्र’ शीर्षक से उध्दृत है  | जिसे नोट करते करते हुए भगत सिंह ने लिखा है ——“ बुर्जुआ जनतंत्र , सामंतवाद की तुलना में एक महान ऐतिहासिक प्रगति होने के बावजूद , एक बहुत ही सीमित , बहुत ही पाखंडपूर्ण संस्था , धनिकों के लिए एक स्वर्ग और शोषितों एवं गरीबों के लिए एक जाल और छलावे के अलावा न तो कुछ है , और न ही हो सकता है |” मार्क्स की रचना कम्युनिस्ट घोषणापत्र से उध्दृत ‘ कम्युनिस्टों का लक्ष्य’ शीर्षक को भगत सिंह ने नोट करते हुए लिखा है ——-“ सर्वहाराओं  के पास अपनी बेड़ियों के सिवाय खोने के लिए कुछ नहीं है | जीतने के लिए उनके सामने सारी दुनिया है | दुनिया के मजदूर एक हो |” त्रात्स्की की किताब से ‘ उपयुक्त क्षण’ शीर्षक को नोट करते हुए भगत सिंह ने लिखा है ——-“ राजनीति में समय एक महत्वपूर्ण कारक है , और युद्ध एवं क्रान्ति में तो यह हजारों गुना अधिक महत्त्वपूर्ण है | चीजें जो आज की जा सकती हैं , कल नहीं की जा सकतीं | हथियार लेकर उठ खड़े होना , दुश्मन को पराजित करना , सत्ता पर कब्ज़ा करना , आज संभव हो सकता है , और कल असंभव हो सकता है |” लेनिन की रचना से ‘साम्राज्यवाद’ शीर्षक को नोट करते हुए लिखा है ——“ साम्राज्यवाद विकास के उस चरण का पूँजीवाद है जिसमें इजारेदारियों और वित्तीय पूँजी ने एक प्रभुत्वकारी प्रभाव हासिल कर लिया है , निर्यात – पूँजी भारी महत्त्व प्राप्त कर चुकी है , अंतर्राष्टीय ट्रस्टों ने दुनिया का बंटवारा करना शुरू कर दिया है और सबसे बड़े पूँजीवादी देशों ने पृथ्वी के समूचे भौगोलिक क्षेत्रफल का आपस में बंटवारा पूरा कर लिया है |”

अपने परिवार के साथ मुलाक़ात ने भगत सिंह को झकझोर दिया था | लेकिन उन्होंने अपनी भावनाओं पर जल्दी ही काबू पा लिया और अपने आप को किताबों में डुबो दिया | उन्होंने रूसो की ‘एमिली’ का एक अंश नोट किया था जिसे वह पढ़ने लगे ——–“ लोग सिर्फ अपने बच्चों की जिन्दगी की सलामती के ही बारे में सोचते रहते हैं , लेकिन इतना ही काफी नहीं है | अगर वह मनुष्य है तो उसे स्वयं भी अपनी जिन्दगी की सलामती के बारे में शिक्षित होना जरुरी है , ताकि वह भाग्य के थपेड़ों को सह सके ,…………उसे मौत से बचने के बजाय जीने की शिक्षा दो |जीवन साँस लेना नहीं बल्कि कर्म है | अपनी इन्द्रियों का , अपने दिमाग का , अपनी क्षमताओं का , और अपनी अस्तित्व को चेतन बनाए रखने वाले प्रत्येक भाग का इस्तेमाल करना है | जीवन का अर्थ उम्र की लम्बाई में कम , जीने के बेहतर ढंग में अधिक है | एक आदमी सौ वर्ष जीने के बाद कब्र में जा सकता है , लेकिन उसका जीना निरर्थक भी हो सकता है | अच्छा होता कि वह जवानी में ही मर गया होता |” इसी नोटबुक में भगत सिंह ने विश्व में कानून व न्याय व्यवस्था पर एक जगह विस्तृत नोट्स लिए हैं , जो लगता है कि अपने मुकदमे की कानूनी लड़ाई खुद ही लड़ने के लिए तैयारी के रूप में लिए गए हैं | ये नोट्स पुस्तकों के उद्धरण न होकर भगत सिंह की न्याय व्यवस्था की समझदारी को इंगित करने वाले हैं | इसी प्रकार एक जगह ‘ राज्य का विज्ञान’ शीर्षक से भी सुकरात से लेकर आधुनिक चिंतकों तक के नोट्स एक ही जगह मिलते हैं , जिसमें फ्रांसीसी और रूसी बोल्शेविक प्रयोग तक को समाहित किया गया है | ‘समाजवाद का आदर्श’ की चर्चा जेल नोटबुक में कई जगह हुई है | नोट्स का यह खंड मार्क्स के उद्धरण सशक्त विद्रोह के साथ समाप्त होता है | ‘भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज के सम्पादक प्रो. चमनलाल ने लिखा है ——-“ भगत सिंह यह अध्ययन किसी विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त करने के लिए तो कर नहीं  रहे थे | उनका एकमात्र लक्ष्य सामाजिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन द्वारा एक नई सामाजिक व्यवस्था के निर्माण की स्पष्ट जीवन दृष्टि ग्रहण करना था , बावजूद इस तथ्य के कि उन्हें अपने शीघ्र ही फाँसी पर चढ़ने का पक्का पता था , अपने जीवन के अंत से पहले अपनी जीवन दृष्टि को वे अधिकाधिक दूरगामी , भविष्योंमुखी व यथार्थपरक बनाना चाहते थे |” देश के तमाम देशभक्तों तथा संसदीय व गैर संसदीय दोनों रास्तों पर चलने वाले वामपंथियों के पास आगे बढ़ने ले लिए भगत सिंह चिंतन को आत्मसात करने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है |