अचानक कोलियरी के पास मंगल भाई से भेंट हुई, वह अपनी ड्यूटी के बाद घर जा रहा था। मंगल, कोलियरी में ठेका मजदूर है। क्या हाल है मंगल भाई ?पूछने पर, मंगल बड़े ही मजाकिया अंदाज में जबाब दिया, “जिन्दगी झंड बा- तनको नहीं घमंड बा” मैंने कहा, क्या बात है, बहुत हताश लग रहे हैं। मंगल बोला, क्या करें! ठेकेदारी में काम करते -करते जिन्दगी सच में झंड हो गया है। ठेकेदार काम तो नाक में नकेल डाल पूरे 8 घंटे कराता है। काम भी ऐसा वैसा नहीं, खदान के अंदर जहाँ मजदूर जाने में भी घबराते हैं, उन जगहों पर हमें काम करना पड़ता है और वेतन के नाम पर प्रतिदिन किसी को चार सौ, तो किसी को पांच सौ, किसी-किसी कोलियरी में तो इससे भी कम है। कोल इंडिया द्वारा निर्धारित वेतन भी हमें नहीं दिया जाता है। अब बताओ, इस महंगाई में इतने कम वेतन में कैसे परिवार चलेगा? ऊपर से काम भी रोज नहीं मिलता। किसी महीने में 10 दिन तो किसी महीने 15 दिन। वेतन बढ़ाने की मांग पर आंदोलन करने पर ठेकेदार काम से बैठा देता है। जो भी मिल रहा है वह भी बंद । ये सब बातें कह वह चल गया। यह अवस्था केवल मंगल भाई की ही बल्कि कोयला उद्योग में कार्यरत सभी ठेका माज़दूरों की है। कोयला उद्योग में स्थाई श्रमिकों की संख्या लगातार कम हो रही है और उत्पादन लगातार बढ़ रहा है I कोयला कंपनी कोयले का उत्पादन करने के लिए ठेका श्रमिक को आउटसोर्सिंग कंपनी द्वारा नियुक्त कर रही हैंI आज कोयला उद्योग का एक तिहाई उत्पादन ( करीब 70 फीसदी) ठेका श्रमिकों द्वारा किया जाता है I उदहारण के तौर पर मैं कोल् इंडिया लिमिटेड की केवल एक सब्सिडियरी ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का रखता हूँ I

ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का मैनपॉवर लगभग 52 हजार के करीब है, जो कि पहले की तुलना में काफी कम है ।एक तरफ मैनपावर में लगातार कमी आ रही है तो और दूसरी ओर उत्पादन लगातार बढ़ रहा है।कारण ,ठेका मज़दूरों से बड़े पैमाने पर उत्पादन कराया जा रहा हैI ई.सी.एल में कार्यरत ठेका मजदूर की अवस्था आज दयनीय हैI उनके काम की कोई निश्चिंतता नहीं है, कभी काम मिलता है तो कभी नहीं, जब मन किया तो उन्हें काम से हटा देना, समय पर उचित वेतन नहीं देना इत्यादिI दूसरी ओर ई.सी.एल द्वारा नियुक्त किए गए आउटसोर्सिंग कंपनियों के ठेका मजदूरों की अवस्था और भी दयनीय है। उन्हें 12 घंटे काम करना पड़ता है, उन्हें मामूली वेतन दिया जाता है, वह भी समय पर नहीं मिलताI किसी का भी CMPF अकाउंट नहीं है, कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है, जहाँ वे काम करते है उस स्थान पर ना तो पीने के पानी की सुविधा, ना ही लाइट और ना ही कोई सुरक्षा सामग्री मिलती है I आज इसीएल में लगभग 30 आउटसोर्सिंग कंपनियाँ काम कर रही हैं I

लगातार लड़ाई, आंदोलन और संघर्ष के बाद कोल इंडिया लिमिटेड, ठेका मजदूरों के वेतन सहित अन्य सुविधाओं के लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन करने के लिए बाध्य हुआ I सात बैठकों के बाद प्रबंधन इसकी सिफारिश मानते हुए इस वेतन समझौते को पूरे कोल इंडिया में लागू करने का आदेश दिनांक 18 फरवरी 2013 को दिया I इस समझौते के अनुसार राज्य सरकार को दिए जाने वाले ठेका मजदूरों का वेतन और कोल इंडिया के स्थाई मजदूरों का न्यूनतम वेतन जोड़कर उनके बीच की राशि ठेका मजदूरों का न्यूनतम वेतन किया गया। जो सही तरीके से लागू नहीं हुआ। अभी पुनः कोल इंडिया और यूनियन के बीच एक नया वेतन समझौता संपन्न हुआI पूरे कोल इंडिया में लागू करने का आदेश दिनांक 09 अक्टूबर 2018 को दिया I आज की तारीख में कोल इंडिया की हाई पावर कमेटी के अनुसार उन्हें प्रतिदिन जो वेतन मिलना चाहिए वह है Unskilled (अकुशल) -985 रुपये, Semiskilled (कुछ-कुशल) -1022 रुपये, Skilled (कुशल) -1060 रुपये, Highly Skilled (अति-कुशल)-1097 रुपये। प्रबंधन द्वारा जारी किए टेंडर में उस राशि का जिक्र होते हुए भी मजदूरों को यह राशि नहीं मिल रही है I इसके खिलाफ हमारा संगठन सी.आई.टी.यू लगातार कई वर्षों से आंदोलन कर रहा है पर अभी तक सफलता नहीं मिली ।

सफलता नहीं मिलने के कारण अनेकों हैं- जिसमें प्रमुख है काम चले जाने का डर। अगर कोई ठेका मज़दूर किसी भी तरह के आंदोलन में भाग लेते हैं तो उन्हें चिन्हित कर अगले दिन से ही काम से बैठा दिया जाता है। जिससे उनके समक्ष बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसलिए जो मिल रहा है, जिस हालात में मिल रहा है, वही प्राप्त कर चुपचाप काम कर रहे हैं। लेकिन अब उन्हें संगठित होने की आवश्यकता है क्योंकि उनके हक का पैसा कोई दूसरा हजम कर रहा है। अगर सभी मिलकर एक साथ आवाज उठायें तो उनके हक का वेतन, जो उन्हें मिलना चाहिए, उससे उन्हें कोई वंचित नहीं कर सकता।
“पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से
कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं”।