सुबह आफिस पहुँचने के पहले ब्रेकफास्ट (नाश्ता) के साथ टिफिन चाहिए, खाना बनाने वाली दीदी के नहीं आने पर सब गोलमाल हो जाता है। घर, बरामदा (आँगन) साफ रखना बहुत ही जरूरी है, काम करने वाली दीदी के नहीं आने पर ही संकट।

बच्चे को रखकर न्यूकिल्यर (एकल) परिवार में दोनों को ही आफिस जाना होता है। आया सेंटर की दीदी पर ही भरोसा है। काम करने वाली दीदी के नहीं आने पर आफिस  जाना नहीं हुआ। बूढ़े माता-पिता की देखरेख करनी होगी और अपना काम भी करना होगा ,या जो बाहर रहते हैं,  काम वाली दीदी पर ही भरोसा।

‘दीदी मैं कल काम पर नहीं आऊँगी ,लड़की को बहुत बुखार है। ‘

‘ भाभी कल नहीं आऊँगी बेटा परीक्षा देने जायेगा। ‘

‘कल अमुक पूजा है, नहीं आऊँगी।  रोजा के कुछ दिन  एक बार आऊँगी ।’

यह बात प्राय: ही सुनने में आती है और इस बात के बाद बहुतों का दिमाग गरम हो जाता है, बहुत तो धैर्य रखते हुए उनके परिवार की खबर लेते हैं। जरुरत पड़ने पर मदद भी करते हैं।

काम वाली दीदी,  परिचारिका,  खाना बनाने वाली दीदी, बच्चे की आया, 24 घंटा घर में काम करने वाली – यही उनकी पहचान है।

लोगों के घरों में जूठा बर्तन धोना ,  घर साफ करना , कपड़े धोना, पानी भरना, खाना बनाना यही काम है। अलग-अलग काम का अलग वेतन है। लेकिन इस वेतन के ढाँचे को कौन तय करता है? यह ठीक है कि इलाके के अनुसार हर तरह के काम का एक  निश्चित रेट है। लेकिन उसकी कोई निर्देशका नहीं है, न्यूनतम मजदूरी नहीं है।

काम पर रखने के समय कितने समय में कितना काम करना है, उसके अनुसार ही कितना महीना देना है , तय होता है। साथ में यह भी बात होती है ‘ मेरे घर में काम करने पर छुट्टी लेना नहीं चलेगा। ‘

कोई सम्मान नहीं। काम करने वाले को घर में बाथरुम व्यवहार करने का उपाय नहीं। आवासन होने पर  नीचे गैरेज में बाथरुम मिलता है। ज्यादातर घरों में खाना देने की परम्परा खत्म हो गयी है और अगर खाने के लिए देते हैं तो अलग बर्तन में, टेबल पर नहीं, नीचे बैठकर खाना पड़ता है।

निरुपाय होकर यह काम करना पड़ता है। ऐसा कोई भी घर देखने को नहीं मिलेगा जहाँ घर का मालिक काम वाली दीदी को आप बोलता हो। बहुत तो तुम बोलते हैं। घर में कुछ खो जाने या नुकसान होने पर काम के साथ संपर्क न रहते हुए भी उनके ऊपर दोष लगाया जाता है।

ऐसे ही मजबूरी में यह काम करना और उस पर काम की गारन्टी नहीं। किसी भी समय काम  जा सकता है। लाकडाउन के समय बहुतों का काम चला गया। पहले जहाँ 4 घरों में काम था, अब 2 घरों में ही काम है।

बस ,आटो का भाड़ा बहुत बढ़ गया है। साथ में आमदनी  कम हो गयी है। रोजमर्रा की चीजों में अस्वाभाविक दाम में बढ़ोतरी हुई है। चावल, दाल, आटा, तेल, साग-सब्जी सभी चीजों का दाम आसमान छू रहा है। पूरा दिन मेहनत करके भी परिवार चलाना मुश्किल ,क्या करना चाहिए ,यह सोचकर कोई उपाय नहीं दिखाई देता है।

 महीना बढ़ाने की बात कहने पर लंकाकांड बन जाता है। तभी हिसाब किया जाता है कि इस दिन नहीं आई, बुखार कहकर कुछ दिनों तक छुट्टी ली।तो अब महीना बढ़ाना होगा ? जहाँ, कहीं भी काम करने पर हर साल इनक्रिमेंट होता है, यही नियम है, लेकिन इस काम में इस अधिकार को माँगने पर गंदी गालियाँ सुननी पड़ती है।

और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी तो हक है।

इस सप्ताह में एक दिन की छुट्टी यह नियम चालू हुआ था क्योंकि श्रमिकों की श्रमशक्ति को पूर्ण रुप से उपयोग करने के लिए सप्ताह में एक दिन छुट्टी चाहिए। नहीं तो एकरसता के कारण काम की गति कम हो जायेगी। शारीरिक दक्षता भी कम हो जायेगी। वह हक की छुट्टी भी नहीं है।

इस पेशे के साथ जुड़े बहुत लोग बस्ती या झुग्गियों वाले इलाके के रहने वाले हैं। गाँव से मूलत: काम की तलाश में शहर आकर इस तरह का जीवन जीते हैं। और कोलकाता  शहर में काम करनेवाली  दक्षिण 24 परगना के दूर दराज इलाकों से आती हैं। इन ट्रेनों को लोग  ‘झी स्पेशल ‘  के नाम से पुकारते हैं। लोगों के घरों में सुबह 7 बजे काम पर र पहुँचने के लिए बहुतों को रात के साढ़े 3 बजे घर से निकलना पड़ता है। एक घंटा, 40 मिनट पैदल चल कर ट्रेन पकड़ना पड़ता है। जाड़ा,गर्मी, बरसात में यही उनका जीवन है।

समीक्षा के रिपोर्ट के अनुसार 90% गृह सहायिका महिला हैं। ज्यादातर की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय है। एक बड़ा हिस्सा पति द्वारा छोड़ दी गयी हैं , अथवा विधवा  हैं। बच्चों को इंसान बनाने की अदम्य जिद लेकर ही इस पेशे के साथ जुड़ी हैं। बहुतों के घरों में पति निकम्मा, शराबी या बीमार, नहीं तो पति दिन मजूरी करते हैं। कमरतोड़ मेहनत। पूरा दिन 4/5 घरों में काम करने के बाद खुद के घर में खाना बनाना या दूसरे काम भी उन्हें ही करना होता है।

इनके दर्द  को सोचने वाले लोग कहाँ हैं?

आम लोग कहाँ सोच रहे हैं? 

और सरकार?

दिल्ली की मोदी सरकार ने बहुत बातें कही थी। लेकिन महीने में मिलने वाले 10 किलो चावल / गेहूँ को भी बंद कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पूरे देश के असंगठित श्रमिकों का नाम सूची में शामिल करने के लिए। ई-श्रम पोर्टल में नाम चढ़ाया गया, लेकिन उसके बाद उनके लिए कुछ भी नहीं किया गया।

पेट्रोल, डिजल, रसोई गैस, किरासन तेल का दाम हर दिन बढ़ रहा है। राज्य की सरकार बहुत बातें कह रही है लेकिन समस्या के समाधान के लिए किसी भूमिका का पालन नहीं कर रही है।

न्यूनतम यूनियन करने का अधिकार नहीं दे रही है। दूसरे राज्यों में यूनियन का रजिस्ट्रेशन होने पर भी हमारे राज्य में नहीं है।/

इस राज्य की सरकार न्यूनतम भत्ता की घोषणा नहीं कर रही है। दूसरे राज्य में वेलफेयर बोर्ड रहते हुए भी हमारे राज्य में नहीं है। गृह सहायिकाओं का एक पहचान पत्र बहुत जरूरी है। यह पहचान पत्र रहने पर घर के मालिकों को सुविधा होगी। यह सरकार यह भी नहीं कर रही है। पेंशन की व्यवस्था भी नहीं कर रही है।

मुँह से बहुत बात बोलने पर भी काम वाली कोई बात नहीं हो रही है। यह साफ है कि पीड़ा से मुक्ति पाने का रास्ता सरल नहीं है। लगातार आंदोलन करके ही अपना  अधिकार लेना होगा।

सामाजिक और आर्थिक रुप से सबसे उपेक्षित, रोज हर तरह के अपमानजनक परिस्थिति का सामना करते हुए जीवन संघर्ष कर रही हैं ,उनको संगठित कर उनके अधिकार को सुनिश्चित  करना ही पश्चिम बंग गृह सहायिका  यूनियन का लक्ष्य है। इस लड़ाई के माध्यम से हर दिन आर्थिक शोषण  ,सामाजिक अपमान से मुक्ति का रास्ता मिलेगा।

11 जनवरी को पश्चिम बंग गृह सहायिका यूनियन (सी आई टी यू)  की ओर से लेबर कमिशनर और श्रममंत्री को ज्ञापन दिया जायेगा। माँगों को मनवाने के लिए सियालदह से कालेज स्ट्रीट तक जुलूस निकाला जायेगा ।

गृह सहायिकाओं की माँगें :

1. भारत सरकार को जल्द आई एल और 189 न. (गृह सहायिका संबंधित)  कन्वेंशन लागू करना होगा।

2. राज्य सरकार को जल्द गृह सहायिकाओं के लिए न्यूनतम वेतन का ढाँचा घोषित करना होगी। 75 रुपये प्रति घंटा। वेलफेयर बोर्ड बनाना होगा।

3. सभी गृह सहायिकाओं को पहचान पत्र देना होगा और सामाजिक सुरक्षा कानून 2008 – के अंतर्गत लाना होगा। पेंशन, पी. एफ, चिकित्सा, बच्चों की पढ़ाई – लिखाई सभी सुविधा देनी होगी।

4. गृह सहायिकाओं को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी, बीमारी पर छुट्टी, मातृत्व पर छुट्टी ,इसके अलावा साल की विशेष छुट्टी के लिए सरकारी सर्कुलर जारी करना होगा।

5. गृह सहायिकाओं के लिए सरकार को विशेष सामाजिक सुरक्षा कानून लागू करना होगा। 55 साल उम्र हो जाने पर न्यूनतम 3000 रुपये पेंशन चालू करना होगा।

6. श्रमिक विरोधी 4 श्रम कोड को रद्द करना होगा।

7. काम करने वाले घरों में खाने-पीने, बाथरुम व्यवहार या बर्तन देने के समय भेदभाव का व्यवहार नहीं चलेगा। इस आंदोलन में समाज के सभी हिस्से के लोगों का साथ मिलेगा, यही उम्मीद है।

(लेखक पश्चिम बंग गृह सहायिका यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष हैं)