तृणमूल की सरकार अभी सत्ता में रहने के कारण सभी सरकारी संस्थाओं के लोगों को , पुलिस प्रशासन और डीएम स्तर के अधिकारियों को लेकर अपनी मनमानी सरकार चला रही है। इसकी वजह से पूरे पश्चिम बंगाल की जनता दहशत में है। 2018 के पंचायत चुनाव में बहुत सी जगहों पर उम्मीदवारों को पर्चा भरने नहीं दिया गया था। जहाँ- जहाँ थोड़ी बहुत विपक्षी दलों की संख्या मजबूत थी वहीं पर प्रत्याशियों ने नामांकन भरा । नामांकन भरने के बाद तृणमूल शासक दल का गुंडा और पुलिस ने मिलकर प्रत्याशियों के घर में जाकर धमकी देकर अपने नामांकन को वापस लेने की धमकी देने लगे। कहीं-कहीं पुलिस प्रशासन प्रत्याशियों के कनपटी में रिवाल्वर सटाकर 1 दिन के अंदर नामांकन वापस लेना होगा ,कहने लगे। आश्चर्य हो रहा है कि इतनी सारी घटना घटने के बावजूद हमारे राज्य  चुनाव आयोग और राज्यपाल महाशय मुख्यतः दर्शक बनकर देखते रह गए और ना ही कोई कार्यवाही की।

2018 में 14 मई को जो पंचायत चुनाव हुआ ,उस दिन भी बूथों में सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक तृणमूल की गुंडा वाहिनी , पुलिस प्रशासन , तृणमूल के नेता और चुनाव आयोग के अधिकारी सब मिलकर खुलेआम हथियार दिखाकर मतदाताओं को बूथ से भगा दिए।तृणमूल के गुंडों और पुलिस प्रशासन ने मिलकर छप्पा वोट मारने लगे। 2018 के पंचायत सदस्य, पंचायत समिति और जिला परिषद जनता के द्वारा चुनी हुई नहीं थी। विपक्ष ना होने के कारण सभी पंचायतों एवं पंचायत समितियों में और जिला परिषदों में खुलेआम भ्रष्टाचार और लूटमार चलता रहा। इसी की वजह से पश्चिम बंगाल के अधिकतर ग्रामीणों और कस्बों में विकास न होने के बावजूद भी जनता खामोश है। लोगों में रोजगार न होने के कारण सरकार की  प्रलोभन की जो नीतियां हैं, जनता मजबूर होकर उस नीतियों को ग्रहण करके जैसे कि लक्खी भंडार, स्वास्थ्य साथी, रूपश्री,युवश्री,शिक्षा श्री इन सभी को बंद करने की धमकी देकर सरकार फिर सत्ता में रहने की कोशिश कर रही है। 8 जुलाई 2023 को जो पंचायत चुनाव होने जा रहा है , उसके लिए जनता जागरूक हो रही है। सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता सड़कों पर संगठित होकर उतर रही है। इसलिए 2023 के पंचायत चुनाव में उम्मीदवारों ने अपने बलबूते पर नामांकन पर्चा भरा है।आने वाले पंचायत चुनाव में तृणमूल की गुंडा वाहिनी एवं पुलिस प्रशासन के विरुद्ध आम जनता ने बूथ पर डटे रहने की ठान ली है। चुनाव आयोग और तृणमूल सरकार दोनों निष्पक्ष चुनाव नहीं करा सकते हैं तो जनता अपने बलबूते पर निष्पक्ष चुनाव कराएगी।

लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई में बंगाल की संघर्षरत वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष -लोकतांत्रिक शक्तियाँ निर्णायक मोड़ पर दिख रही हैं।