बंगाल में 8 जुलाई को पंचायत चुनाव होगा।सभी राजनीतिक दल चुनाव लड़ रहे हैं ।लेकिन इस बार का चुनाव वामपंथी दल के लिए अलग ही चुनाव है ,इस पंचायत चुनाव में वामपंथी दल के कार्यकर्ताओं- समर्थकों में अलग मात्रा में जोश दिखाई दे रहा है। वामपंथी दलों में 2018 के पंचायत चुनाव और 2023 के पंचायत चुनाव में जमीन आसमान का फर्क नजर आ रहा है।

हमारे अलीपुरद्वार जिला में देखा जाए तो सभी राजनीतिक दल चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन शासक तृणमूल 2018 साल में जिस तरह चुनाव लड़ी थी ,आज वह उस जगह नहीं रही। वामपंथी दल जिला के प्रत्येक ब्लाक में जनता को साथ लेकर आंदोलन संग्राम के माध्यम से अपनी ताकत जुटाई है और जनता भी पूरी तरह से वामपंथी दलों को समर्थन कर रही है। देखा जाए तो कोरोना के समय में राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने आम जनता के हित मे ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसके लिए जनता उन्हें याद रखेगी।लेकिन वामपंथी सी पी आई एम दलके रेड वालंटियरों ने जिस तरह से सारे राज्य में काम किया उसे आज भी आम जनता याद करती है। कोरोना के समय ऐसा लग रहा था कि वामपंथी दल एक अलग से सरकार चला रही है और उस महामारी के समय आम जनता ने भी पूरी तरह रेड वालंटियरों का समर्थन किया था। पूरा बंगाल जब कोरोना से जूझ रहा था। तब सरकार उसकी पंचायत के माध्यम से कोरोना पीड़ित जनता के दुवार के सामने बाँस का बैरिकेड लगाने में लगी हुयी थी, उस बैरिकेड और कोरेण्टेन सेंटर चनाले हेतु लाखों – लाखों रुपयों का घोटाला की। उसेक बाद” दुवारे सरकार” नाम करके आमजनता को फिर से लाइन में खड़ा कर दी। आम जनता “दुवारे सरकार “का चक्कर काटते रही। केवल सरकारी संख्या में गिनाते रहे लेकिन गरीब जनता अपना समस्या सही तरह से समाधान नहीं कर पाई। 100 दिनका काम किए 15 महीना बीत चुका लेकिन मजदूरी अभी तक नहीं मिला , प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए हरेक परिवार से आधार कार्ड, वोटर कार्ड, बैंक पासबुक लिए लेकिन अभी तक घर नहीं मिला, आमजनता केवल हैरानी का शिकार हुयी।कृषि क्षेत्र में किसानों ने अपना फसल उगाया लेकिन उसका बाजार दाम सही तरह से नहीं मिला ।

उपजाऊ किया हुआ आलू को रखने के लिए हिम् घर मे बॉन्ड पाने के लिए भी किसानों को मुश्किलों से जूझना पड़ा , लेकिन सरकार इन समस्याओं का सही समाधान करने में असमर्थ रही। हमारे अलीपुरद्वार जिला में अधिकांश चाय बागान हैं , चाय मजदूरों के लिए वर्तमान तृणमूल सरकार का दृष्टिकोण सही नहीं हैं । उनकी मजदूरी बढ़ाने के लिए सरकार किसी तरह की सही भूमिका नहीं ले रही है। वामपंथी सरकार के समय में जितनी सुविधा चाय मजदूरों को मिलती थी।आज वह सब कटौती हो गया ,केवल दैनिक 232 रुपये में काम करना पड़ता है।

इस पंचायत चुनाव के दौरान चाय मजदूरों की ओर से आवाज उठा रही है कि पहले का समय ही ठीक था , पहले की वामपंथी सरकार ही ठीक थी ,लाल झंडा को फिर से