पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की हत्या कब तक?

8 जुलाई 2023 को पश्चिम बंगाल में दसवां पंचायत चुनाव होने जा रहा है। पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार ने देश भर में पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली की शुरुआत की थी। 1977 में वाममोर्चा सरकार के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते हुए ज्योति बसु ने कहा था कि उनकी सरकार राइटर्स बिल्डिंग से नहीं चलेगी l जनता तक खासकर के ग्रामीण इलाके की जनता तक सरकारी सुविधाएं पहुंचाने के लिए उनकी परेशानियां जानने के लिए जनता द्वारा ही उनके बीच में से ही चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा सरकार चलाई जाएगी। इस तरह से ही पंचायत चुनाव की शुरुआत हुई थी। पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार ने पंचायत चुनाव में ही पूरे देश में सबसे पहले 18 साल में मतदान का अधिकार दिया था।

अगर कहा जाए कि लोकतंत्र की आत्मा क्या है तो जवाब होगा कि जनता का वोट। जनता का वोट ही वह लगाम है जिसके जरिए जनता ना सिर्फ सरकारों पर लगाम लगाती है बल्कि उनको सबक भी सिखाती है। इसलिए हमारे देश में मतदान को लोकतंत्र का उत्सव या पर्व भी कहा जाता है।

पश्चिम बंगाल में 2011 से ममता बनर्जी की अगुवाई में जब से तृणमूल सरकार सत्ता में आई है तब से लेकर अब तक पश्चिम बंगाल में विकास के नाम पर सिर्फ और सिर्फ लोकतंत्र की हत्या ही हुई है। माँ,माटी, मानुष का नारा देकर पश्चिम बंगाल की सत्ता पर कब्जा करने वाली ममता बनर्जी ने सत्ता में आते ही पश्चिम बंगाल की जनता को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।

बात जहां चुनाव को लेकर की जाए तो तृणमूल सरकार के सत्ता में आने के बाद जब -जब चुनाव हुए हैं, तब तक पश्चिम बंगाल में खून की नदियां तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा बहाई गई हैं।हमने देखा कैसे 2018 में 95% से ज्यादा ग्राम पंचायत सीटों में से टीएमसी ने 34% सीटों पर निर्विरोध जीत हासिल कर ली थी। विरोधी पार्टियों को नामांकन तक करने नहीं दिया गया। नामांकन को वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया।जनता के वोट को लूटा गया। चुनाव जीतने के लिए जनता को धमकाया गया। गोली,बम,पुलिस, प्रशासन सब का इस्तेमाल किया गया।

इस बार भी तृणमूल कांग्रेस की सरकार अपनी पुरानी नीतियों को अपनाते हुए हिंसा के दम पर चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है I चुनाव की तारीख की घोषणा होने के बाद से ही पश्चिम बंगाल में टीएमसी का खूनी खेला चालू हो गया है। विरोधी पार्टियों को नामांकन नहीं करने देने की कोशिश की गई है। टीएमसी के प्रार्थी के नामांकन फॉर्म पहले ले लिए गए बाकी सब प्रार्थी को घंटों इंतजार करना पड़ा I .उत्तर दिनाजपुर के चोपड़ा जिले में वाममोर्चा के उम्मीदवारों को नामांकन करने से रोकने के उन्हें अगवा किया गयाl वाममोर्चा के जुलूस पर बम से हमला किया गया, जिसमें हमारे कॉमरेड मंसूर अली शहीद हो गए। यह सब पश्चिम बंगाल में पहली बार नहीं हुआ है। उत्तर 24 परगना, मुर्शिदाबाद,बांकुड़ा से लेकर उत्तर दिनाजपुर चोपड़ा तक पूरा पश्चिम बंगाल लहूलुहान है।यह पहला चुनाव है जब कांग्रेस और भाजपा ने केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। लेकिन सी पी (आई)एम ने ऐसी कोई मांग नहीं की है।सी पी आई एम पश्चिम बंगाल के सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा कि हम जनता की अदालत पर भरोसा करते हैं।8जून को चुनाव की घोषणा के अगले दिन ही वाममोर्चा के उम्मीदवार जब नामांकन दाखिल करने गए तो वहाँ चुनाव आयोग की कोई तैयारी नहीं थी।

जिसतरह सीपीआई(एम) राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने पूरे पश्चिम बंगाल में जनसभाएं की है। जिस तरह उनकी अगुवाई में . पूरे पश्चिम बंगाल में ‘गाँव जगाओ चोर भगाओ’ मुहिम चलाई गई है। सागरदीघी उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की करारी हार से यह संदेश स्पष्ट हो गया है कि मतदाताओं ने दोनों पार्टियों की नीतियों को समझ लिया है। रामनवमी के जुलूस,भाषा और जाति के नाम पर बंगाल के लोगों को लड़ाने की कोशिश सफल नहीं हुयी है। तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार ही टी वी चैनल में बैठ कर कह रहे हैं कि उनको अपनी पार्टी और सरकार पर विश्वास नहीं है। उसका असर है कि ममता बनर्जी को अपनी हार का डर सताने लगा है, इसीलिए 12 साल बाद ममता बनर्जी खुद पंचायत चुनाव के लिए प्रचार के लिए जुट गई हैं।एक तरफ जहां टीएमसी के विभिन्न मंत्रियों के नाम जिस तरह घोटालों में सामने आ रहे हैं चाहे वह कोयला घोटाला हो, बालू घोटाला हो,मवेशी तस्करी का मामला हो,सोना तस्करी या फिर नौकरी के नाम पर लूटे हुए करोड़ों रुपए का मामला हो ,जनता समझ चुकी है कि टीएमसी सरकार जनता को मूर्ख बना रही है।

दूसरी तरफ डीवाईएफआई पश्चिम बंगाल की सचिव मीनाक्षी मुखर्जी की अगुवाई में जिस तरह युवा संगठन के नौजवान हर आपदा में चाहे करोना काल हो या कोई और मुसीबत रेड वॉलिंटियर के रूप में लोगों का सहयोग कर रहे हैं उसका असर यह है कि आज पश्चिम बंगाल की जनता इस घोटालों की सरकार से मुक्ति पाना चाहती है।जनता समझ चुकी है कि इस चोरों की सरकार से मुक्ति पाने के लिए एकमात्र विकल्प लाल झंडा ही है इसीलिए जनता जोश के साथ वाम फ्रंट उम्मीदवारों के साथ आ रही है। मीनाक्षी मुखर्जी की जनसभाओं में जिस तरह जन सैलाब उमड़ रहा है वह दिनकर की कविता”सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”की याद दिलाती है।

इस बार भी चुनाव में टीएमसी उम्मीदवारों द्वारा खेला होबे खेला होबे गाना खूब बजाया रहा है।पर जिस तरह से पश्चिम बंगाल की जनता का रुझान देख रहे हैं जिस तरह पश्चिम बंगाल की जनता फिर से लाल झंडा थाम रही है उसको देखकर यही लग रहा है कि इस बार टीएमसी का ‘खेला होबेना’।पश्चिम बंगाल का यह पंचायत चुनाव ऐतिहासिक होने जा रहा है।यह देश के वामपंथी लोकतांत्रिक आंदोलन के लिए निर्णायक मोड़ होने जा रहा है। देश को बचाने के साथ बंगाल के गाँवों को बचाने की लड़ाई में वामपंथी दलों के नेतृत्व में जिस तरह जुलूसों और जनसभाओं में जन सैलाब उमड़ रहा है,उसकी ओर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।

उजागर करना होगा नहीं तो हमारे बाल बच्चों का भविष्य अंधकार है। इस बार के पंचायत चुनाव में इन सारे मुद्दों को देखते हुये आम जनता वोट देगी , जिस तरह से राज्य के नेता और मंत्री घोटाला करके जेल के अंदर पड़े हैं ,उससे आम जनता समझ चुकी है कि तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी केवल अपने फायदे के लिए चुनाव में शामिल हुए हैं ,जनता की समस्या दूर करना और गांव का सामग्रिक विकास से इनका कोई मतलब नहीं। वामपंथी दलों में इस बार पंचायत चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन करने समय देखा गया कि जिला के जितने भी उम्मीदवार हैं उनका आधा से ज्यादा प्रार्थी छात्र और नौजवान हैं और इन उम्मीदवारों की उम्र लगभग 25 से 35 का है। हमारे वामपंथी दल के उम्मीदवारों को देखते हुए आम जनता बड़ी उत्साही है और हमारे छात्र -युवा उम्मीदवार भी बड़े जोश और उमंग से अपना चुनावी प्रचार कर रहे हैं और यह जोश देखते हुए हर रोज जिला के हरेक ब्लॉक में कहीं ना कहीं लोग तृणमूल ,बीजेपी को नकारते हुए वामपंथी दल में शामिल हो रहे हैं। चुनाव का दिन जितना नजदीक आ रहा है, वामपंथी दल के प्रचार में ज्यादा तादाद में समर्थक जुड़ रहे हैं। आशा करते हैं कि इस पंचायत चुनाव में आमजनता वामपंथियों को निराश नहीं करेगी ,यह पंचायत चुनाव लाल झंडा का लिए एक अलग ही मील का पत्थर साबित होगा।