2020 में केंद्रीय सरकार ने बिना किसी तैयारी के कोरोना को नियंत्रण में करने के लिए लॉकडाउन जारी किया था। सरकार ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि लॉकडाउन जारी  करने के बाद आम जनता पर इसका क्या प्रभाव होगा। हमारे देश के लोगों को लॉकडॉउन का कोई भी अनुभव नहीं था। लॉकडाउन जारी करने के बाद सरकार ने कोरोना का समाधान करने के लिए लोगों को घंटा, कटोरा, थाली बजाने के लिए कहा था ।सरकार का यह मानना था कि इन सब अंधविश्वास से कोरोना पर काबू पा लिया जाएगा। वहीं दूसरी तरफ वामपंथी छात्र – युवाओं ने विकल्प व्यवस्था जैसे कोरोना पीड़ित को सहायता करना जैसे उनकी दवा की व्यवस्था करना, ऑक्सीजन देना, रोगियों को हॉस्पिटल ले जाना, जब कोरोना से मृत व्यक्तियों की लाश को सरकार गंगा में फेंक दे रही थी तब वामपंथी छात्र – युवाओं ने उनके परिजनों के साथ मिल कर लाश का दाह संस्कार करने में भी उल्लेखनीय भूमिका निभायी है। जो लोग बाहर विदेश में थे उनके माता – पिता जब कोरोना से आतंकित हुए तब रेड वोलेंटियर ने ही एक संतान की तरह उनकी सेवा की है।  लॉकडॉउन जारी करने की वजह से जो प्रवासी मजदूर थे, जो लोग दूसरे राज्य में अपने परिवार से दूर, अपने घर से दूर काम करते थे, वे लोग अपने घर नहीं जा पा रहे थे। बहुत सारे लोग लॉकडॉउन की वजह से जब भूख से मर रहे थे। तब ठीक उस समय उनलोगों के पास जो लोग खड़े थे ,वे थे वामपंथी छात्र – युवा। जब पूरे पश्चिम बंगाल के हर एक अंचल में यही वामपंथी छात्र – युवा लॉकडॉउन में लोगो की मदद कर रहे थे, तब इनके पास रेड वालंटियर का कोई टाइटल नहीं था।

लोगों को घर पर खाना पहुँचाना, कोरोना रोगियों को अस्पताल ले जाना, कोरोना रोगियों का घर सैनिटाइज करना, उनके लिए खाना देना इत्यादि यह सब बंगाल के हर एक कोने में वामपंथी छात्र – युवा कर रहे थे। तब इन वामपंथी छात्र – युवाओं को यह रेड वोलेंटियर का टाइटल दिया गया ।

2021 में जब कोरोना की दूसरी लहर आयी, जब अन्य राजनैतिक दल चुनाव प्रचार में व्यस्त थे तब चुनाव प्रचार के साथ – साथ रेड वालंटियर के काम को भी साथ में करने वाले यही वामपंथी छात्र – युवा थे। जब अन्य दलों को राजनीतिक लाभ के सिवाय और कुछ नहीं दिख रहा था ,जब इन लोगों ने खुद के फायदे के लिए लोगों के जान की बाजी रख दी तब बिना किसी हार – जीत की परवाह किए यही वामपंथी छात्र युवा रास्ते में थे। 

जब इस कोरोना परिस्थिति से लोग आतंकित हो गए थे। जब ऑक्सीजन के अभाव की वजह से लोग मर रहे थे। जब कोरोना रोगी के परिवार परिजन भी उनके पास जाने से डरते थे। जब जनता द्वारा निर्वाचित  सरकार को खोजने से नहीं मिल रही थी। उस समय हार जीत का अंक भूल कर मैदान में उतरने वाले यही वामपंथी कर्मी थे। “इस लाल झंडे ने ही सिखाया है कि विपत्ति में लोगों के पास खड़े रहना”। कोरोना से आतंकित रोगियों को हॉस्पिटल ले जाना, ऑक्सीजन की व्यवस्था करना एवं कोरोना रोगियों के लिए कोविड कैंटीन चालू करना, यह सब इस लाल झंडे की शिक्षा के वजह से ही संभव हो पाया है। 

जब लॉकडाउन की वजह से स्कूल बंद हो गये थे तब वामपंथी छात्र – युवाओं ने जगह – जगह पर कोचिंग क्लास का भी इंतजाम किया। राज्य में ब्लड बैंक में रक्त की कमी होने पर उन्होंने ब्लड डोनेशन और हेल्थ चेकअप जैसे कार्यक्रम भी किए। तब जैसे इन “रेड वालंटियर” ने कोरोना के समय लोगो की मदद की। आज भी यह ” रेड वोलेंटियर ” आम लोगों के हक के लिए, रास्ते पर हैं और प्रतिवाद, प्रतिरोध करते रहेंगे। हमे गर्व है कि हम भगत सिंह,प्रीतिलता वाद्देदार, चे गुएवारा, की विचार धारा  के संघर्ष को लगातार जारी रखने वाले छात्र – युवा हैं।

कोरोना के समय रेड वालंटियर का कर्तव्य निभाते समय हमारे कई कामरेडों की मौत हो गयी।

उन सबकी स्मृति को लाल सलाम!