सार्वजनिक उद्योग बचाओ- कोलियरी बचाओ- रोजगार बचाओ की मांग पर 5 अप्रैल 2023 को संसद भवन अभियान में देशभर के कोयला मजदूर बड़ी संख्या में भागीदारी करने को तैयार । 

                          बिरजू यादव

बात कुछ पांच वर्ष पहले की है, एक दिन बाजार की तरफ कुछ सामान की खरीदारी का मन बनाये एक निर्दिष्ट दुकान की ओर बढ़ ही रहा था कि अचानक किसी की आवाज कानों में पड़ी, रुक कर पिछे देखा, तो पाया कि एक बड़े दुकान के पास खड़ा व्यक्ति मुझे आवाज दे रहा था। मन में उत्सुकता बढ़ी, भला वह मुझे क्यों बुला रहा है, मन में कई सवालों की गठरी लिए उस व्यक्ति की ओर बढ़ा, जब उसके पास गया तो देखा कि यह तो वही दुकानदार है, जिसकी मिठाई की दुकान सातग्राम एरिया के एक कोलियरी के पास थी। मैंने पूछा, कहिए, कैसे याद किया, सब खैरियत है ? उसने कहा, अब क्या बताऊं यार, तुम्हें तो मालूम है कि कोलियरी को बंद हुए तीन वर्ष हो गए हैं एवं कोलियरी बंद हो जाने के कारण दुकान बिल्कुल नहीं चल रही थी, इसलिए दुकान बंद कर दी और अब यहाँ इस दुकान में काम कर रहा हूँ। परिवार पालने के लिए कुछ न कुछ तो करना होगा। यहाँ जो भी वेतन मिलता है, उसी से किसी तरह गुजारा हो रहा है। तुमलोग ठीक ही कहते थे कि यह जो सरकार है, सब कुछ बंद कर बेच देगी। मैंने कहा, चलिए, देर से ही सही, यह बात आपको समझ आ गई। उसने जवाब दिया, जब अपने पर बीतती है तभी समझ में आता है भाई। जब तुम लोग मीटिंग में बंद कोलियरी के बारे में बताते थे, तब मैं सोचता था कि ये लोग बकवास कर रहे हैं। असल में –

 “जाके पैर न फटे बवाई, 

सो क्या जाने पीर पराई”

और कहा मेरे चचेरे भाई की दुकान अभी भी अच्छे से चल रही है कारण कोलियरी चालू है एवं उसकी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी है। उसके बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं, यही नहीं, उसी दुकान की बदौलत उसने दो मंजिला मकान भी खड़ा कर लिया है। करीब 10 मिनट तक बातचीत के बाद अपनी किस्मत को कोसता, फिर मिलेंगे कह, चला गया। मैं भी उसी दुकान की ओर चल पड़ा, जहाँ से मुझे सामान खरीदना था। साथ ही यह भी सोचता रहा कि यह वही आदमी था जिसके पास एक मिनट का समय बात करने के लिए नहीं रहता था, मिठाई दुकान कोलियरी के बगल में रहने के कारण काफी अच्छी चलती थी। कोलियरी में कोई भी मीटिंग होने पर यह व्यक्ति बहुत ही नाराज होता था कारण दूसरी कोई जगह न होने के वजह से मजदूर उसके दुकान के सामने ही इकट्ठा होते थे । किसी भी विषय पर मीटिंग, चाहे वह मजदूरों के हक की हो या वह कोलियरी बचाने के लिए लड़ाई आंदोलन के विषय में हो , यह व्यक्ति, मीटिंग शुरू होते ही दबी आवाज में कहता था ” इन लोगों को कोई काम नहीं, दुकानदारी के टाइम में ही मीटिंग।” यह उसकी आदत थी,यूनियन के लोग भी उसे नजरअंदाज कर सभा करते थे। इतना ही नहीं कोलियरी अगर किसी अन्य काम से जाता तो ये व्यक्ति उपहास कर कहता था “अब किस दिन मिटिंग करना है, भाई” एक दिन हमारे एक साथी को उसकी बातें बुरी लग गई एवं उसने भी जवाब देते हुए कहा” कोलियरी चालू है, तभी तक तुम्हारा दुकान भी चल रहा है, जिस दिन कोलियरी बंद हुआ, उस दिन दुकान भी बंद हो जायेगा। हमारी लड़ाई में साथ देने के बजाय हमारा उपहास कर रहे हो। इतना सुन वह एकदम चुप हो गया ।

यहाँ आप सभी को थोड़ी जानकारी देने की आवश्यकता है, ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड में कुल 12 एरिया है। जिसके अंतर्गत सातग्राम भी आता है। सातग्राम एरिया में बहुत सारी कोलियरियाँ थी। जिसमें कि अब कुछ ही चालू है। कोलियरी जो इस एरिया के अंर्तगत चालू है वह है *निमचा *आमकोला *जे.के नगर * चपुई खास * सातग्राम प्रजेक्ट * सातग्राम इनकलांइन * कालिदासपुर *प्योर सियारसोल। लेकिन प्रबंधन के दिये गये आकड़े के मुताबिक यह सभी कोलियरियाँ घाटे में चल रही है। कोलियरियाँ जो  बंद हुई * रोटीबाटी * नागेश्वर *मिठापुर * तिराट * कुआरडिह * मोडर्न सातग्राम *शितलदास ओ.सी.पी * सेन्ट्रल सातग्राम * न्यु सातग्राम इत्यादि जितना नाम याद था वह लिखा। जब कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया था उस समय ईसीएल के पास कुल 414  खदानें थी।  जबकि आज ईसीएल के पास महज 78 कोयला की खदानें ही बच गई  हैं जिसमें 49 भूमिगत, 20 ओपन कास्ट एवं 9 मिश्रित कोयला खान हैं। सरकार एवं प्रबंधन की गलत नीतियों के कारण एक के बाद एक बहुत सारे कोयला खान बंद होते चले गये। 

यहाँ आप लोगों ने चालू कोलियरी के नामों में प्योर सियारसोल कोलियरी का नाम भी पढ़ा होगा। इस कोलियरी को भी प्रबंधन ने 1996 में बंद कर दिया था। इसके बाद कोयला मजदूरों सहित कोलियरी के आसपास के रहने वाले लोगों ने साथ मिलकर एक जबरदस्त आंदोलन प्रबंधन के खिलाफ शुरू कर दिया।आंदोलन की तीव्रता इतनी थी कि कोयला प्रबंधन बाध्य हुआ कोलियरी फिर से चालू करने को ।यह कोलियरी आज भी चालू है और अच्छा उत्पादन कर रही है।कोलियरियाँ बंद होने से कोयला मजदूर तो प्रभावित होता है लेकिन उससे कहीं ज्यादा प्रभावित होते हैं कोलियरी के आसपास रहने वाले लोग। कोलियरी बंद के कारण कोयला मजदूर का ट्रांसफर दूसरी कोलियरी में हो जाता है। लेकिन उस कोलियरी पर निर्भरशील उसके आसपास के लोगों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो जाता है। 

इसलिए कोलियरी बचाने की लड़ाई, आंदोलन में कोलियरी के आसपास रहने वाले लोगों को शामिल होना अत्यंत ही जरूरी है। कारण कोलियरी बंद का प्रभाव सबसे अधिक उन पर ही पड़ता है। दूसरी तरफ केंद्र की बीजेपी सरकार कोयला उद्योग को खत्म करने के लिए एक के बाद एक घातक मजदूर विरोधी एवं उद्योग विरोधी कानून बना लागू कर रही है एवं  कोयला उद्योग को निजी मालिकों के हाथों सौंपने की साजिश में लगी हुई है।

2015 में उसके द्वारा संसद में पारित,”कोयला खदान विशेष प्रावधान कानून ” है जिसके माध्यम से  नये कोयला ब्लॉकों को निजी मालिकों को सौंपने तथा कोयला की बिक्री का रास्ता खोल दिया गया था । सरकार ने इस कानून में और संशोधन कर 2020 में निजी मालिकों को अनियंत्रित रूप से कोयले के व्यावसायिक खनन व बाजार में बेचने की अनुमति का कानून पारित किया । सरकार ने कोयला उद्योग में 100% विदेशी निवेश का भी ऐलान कर दिया। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन स्कीम के तहत सरकार की योजना है 160 तथाकथित चालू /बंद कोयला खदानों को प्राइवेट मालिकों / विदेशी पूंजी पतियों को मुफ्त में देने का प्रावधान है और सरकार का कहना है — खदान चलाओ, मुनाफा करो और कोयला जहाँ कहीं बेचो और सरकार को मात्र मुनाफे का 4 प्रतिशत दे दो। कोल इंडिया लिमिटेड का विनाश करने हेतु पुनर्गठन के नाम पर ईसीएल और बीसीसीएल को कोल इंडिया से अलग करने की साजिश एवं इनके शेयर बेचने का निर्णय लिया गया। अब तक कोयला उद्योग का लगभग 34 प्रतिशत शेयर बिक चुका है। इसके साथ-साथ अभी तक कोयला मजदूरों के एनसीडब्ल्यूए-11 लंबित पड़ा हुआ है।

इन सब मजदूर विरोधी कदमों के खिलाफ आगामी 5 अप्रैल 2023 को संसद भवन अभियान में कोयला मजदूर के साथ-साथ कोयला खदान इलाके के आसपास के आम लोग भी बड़ी संख्या में भागीदारी करने को तैयार हो रहे हैं।