मोहम्मद वाहिद और रवींद्र सिंह। एक जाति से मुसलमान और दूसरा हिंदू। पेशे से दोनों राजमिस्त्री। हर दिन काम की तलाश में एक गांव से दूसरा गांव एक छोर से दूसरे छोर। बाजार में ईंट ,बालू,सीमेंट जैसे सामग्रियों का भावआकाश को छू रहा है। आज काम है ,तो कल नहीं। ना काम का ठिकाना, ना मजदूरी का और ना कोई सामाजिक सुरक्षा। इबादत करने के लिए दोनों ही अलग-अलग जगह जाते हैं लेकिन रोजगार की तलाश में दोनों की हालात और मंजिल एक ही है

दीपक दास और मोहम्मद मेराज। एक जाति से हिंदू और दूसरा मुसलमान। दोनों बल्लभपुर पेपर मिल में ठेका मजदूर हैं। मजदूरी ₹268 प्रतिदिन। कभी 12 घंटा तो कभी 16 घंटा। ना प्रोविडेंट फंड और ना ही ईएसआई की सुविधा है। पेपर मिल में इनके जैसे तमाम मजदूर जीरो बैलेंस के नाम से परिचित हैं जो कि इंडस्ट्रियल डिक्शनरी में शायद ही किसी ने पहले सुना होगा। पूजा पाठ करने के लिए यह दोनों भले ही अलग-अलग जगह जाते हैं लेकिन मालिक एवं राष्ट्र द्वारा एक ही तरीके से एक ही जगह शोषित होते हैं।

यह सभी पश्चिम बर्धमान जिला के निवासी हैं। पश्चिम बर्धमान जिला कुल्टी से काँकसा। मिनी भारतवर्ष। हर जाति, धर्म ,वर्ण,

भाषा के लोगों का निवास स्थान। अनेकता में एकता की विशेषता को चरितार्थ करने वाला जिला। अजय और दामोदर नदी की गोद में जमीन के ऊपर धान और जमीन के नीचे कोयले की खान। आसनसोल और दुर्गापुर शिल्पांचल सुनहरे इतिहास को समेटे हुए इस जिले के आर्थिक वैभव का प्रतीक। यह अंचल एक समय जर्मनी के रूढ़ अंचल के नाम से जाना जाता था। ईद में मोहम्मद वाहिद के घर के सवैया ,दीपक दास के घर में दुर्गा पूजा के रसगुल्ले और रविंद्र सिंह के घर में गुरुद्वारे में होने वाले उपासना में हलवे की बात ही कुछ अलग है । कुछ तो है जो आलग- अलग संस्कृति के होने के बावजूद भी इन सबों को एक साथ जोड़ कर रखता है। शायद देश के धर्मनिरपेक्षता कि नींव पर बनी हुई प्यार और भाईचारे की ईमारत ही वह कड़ी है।

देश के पूँजी पतियों के हित में उदार अर्थनीति के रास्ते पर चलने वाले शासक वर्ग की आर्थिक नीति के कारण आज यह जिला शमशान में तब्दील होती जा रही है। सरकारी और गैर सरकारी कुल मिलाकर सिर्फ इस जिले में करीबन छोटे बड़े 52 कारखाने बंद है। ब्लैक डायमंड के नाम से जाने वाली क्षेत्र में करीबन 27 कोयला खदान बंद हो चुके हैं। हिंदुस्तान केवलस, एलॉय स्टील प्लांट बर्न स्टैंडर्ड एमएएमसी जैसे उद्योग धंधे बंद हो चुके हैं। इन सब का सीधा असर इस जिला के अर्थनीति व्यवस्था एवं जन जीवन पर पड़ा है। गरीबी भुखमरी बेरोजगारी ने पूरे देश और राज्य की तरह किस जिले में भी गहरी आर्थिक विषमताओं को चौड़ा किया है। इसके लिए केंद्र और राज्य की सरकारें समान रूप से जिम्मेदार है। आर्थिक बदहाली को सुधारने की बजाए इन दोनों सरकारों ने वोट बैंक की राजनीति में आर्थिक तौर से पिछड़े लोगों को सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति का शिकार बनाया। जोजिला मिनी भारतवर्ष के नाम से परिचित था वहां मंदिर मस्जिद के नाम पर हिंदू मुसलमान के नाम पर रानीगंज और आसनसोल में सांप्रदायिक दंगे हुए। जो यहां के लोगों ने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा था।

दुख तकलीफ पहले भी जिंदगी में थे लेकिन लोग मिल बांट कर खाते थे ,एक साथ रहते थे। लेकिन मौजूदा स्थिति में चाय की दुकानों से क्रिकेट के ग्राउंड तक बंटवारे की लकीर खींची जा रही है। जिसका सीधा असर मोहम्मद वाहिद और रविंद्र सिंह, दीपक दास और मोहम्मद मेराज के जिंदगी में पड़ा है । जो लोग एक साथ मिलकर रहते थे जब रानीगंज में सांप्रदायिक दंगे हुए तो दोनों लोग दो खेमे में बँट

गए। कोई मस्जिद तोड़ने की बात करने लगा तो कोई मंदिर तोड़ने की बात करने लगा

पाठक गन आज पूरी दुनिया की यही सच्चाई है। 1991 साल में सोवियत यूनियन के पतन के बाद पूरी दुनिया में पूंजीवाद मुनाफा मुनाफा केवल मुनाफा के नाम पर घोषणा किया There is no alternative. लिखा गया The word is flat. पूँजीवाद का बुलडोजर आगे बढ़ेगा और उस के पथ में कोई बाघा नहीं रहेगी। समाजवाद का नाम लेने वाला कोई नहीं रहेगा। ना वर्ग चेतना होगा और ना ही मजदूर आंदोलन।जीना यहां ,मरना यहां इसके सिवा जाना कहां बस यही मंत्र रहेगा। इसी मंत्र के साथ पूंजीवाद आगे बढ़ने लगा । नया उदारवादी अर्थनीति का जन्म हुआ। लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं था। कुछ ही दिनों में मंदा की चपेट से पूंजीवाद का कांपने लगा। चारों तरफ आर्थिक विषमता गरीबी भुखमरी बेरोजगारी महंगाई बढ़ने लगी। इस व्यवस्था के खिलाफ लोग सड़क पर उतरने लगे। बड़ी-बड़ी हड़ताल होने लगी। अब तेरा क्या होगा रे कालिया ? पूंजीवाद के खेमे में हड़कंप मचाने लगी। सोच विचार शुरू हुआ। फिर से मेडिकल प्रिसक्रिप्शन तैयार हुआ। सैमुअल हंटिंगटन का Clash of civilization. ईसाई बनाम इस्लाम, हिंदू बना मुसलमान। सभ्यता संघर्ष का तत्व। समझाया गया सरकार व्यवस्था के खिलाफ नहीं तुम्हारे दुर्दशा का कारण जातिगत भाषागत और धार्मिक है। तुम अगर बेरोजगार हो तुम अगर गरीब हो तुम्हें अगर शिक्षा नहीं मिला है तुम भुखमरी के शिकार हो इसके लिए सरकार या व्यवस्था जिम्मेदार नहीं।जिम्मेदार हैं किसी अन्य जाति धर्म या भाषा के लोग। तुम्हें लड़ना है तो उन्हीं के खिलाफ लड़ना होगा।

आज वर्तमान समय में बस यही खेला चल रहा है। इसी खिला के शिकार हो रहे हैं मोहम्मद वाहिद और रविंद्र सिंह तथा दीपक दास और मोहम्मद सिराज।

अब क्या करेगा मोहम्मद वाहिद और रविंद्र सिंह या दीपक दास और मोहम्मद मेराज। ALl Is well- कहेगें । चुपचाप सहेंगे?

या सरकार और व्यवस्था से सवाल पूछेंगे? या भ्रुकुटी तानकर एक साथ बोलेंगे- ALl Is Not Well. या व्यवस्था हमारे लिए नहीं है। हम लडे़गें, संघर्ष करेंगे।

इस व्यवस्था को बदलने के लिए।