जब वाममोर्चे की सरकार जाने के एक वर्ष पहले, उस समय कोलकाता और पश्चिम बंगाल के हालात कुछ अलग थे, नन्दीग्राम के बारे में झूठी अफवाहें फैलाकर कालेज, विश्वविद्यालय और गांवों के अंदर वाममोर्चा एवं कम्युनिस्टों के प्रति कुप्रचार करके एक विपरीत माहौल तैयार किया गया था। जिससे विपरीत प्रचार व कार्यकलाप बढ़ गया था। तृणमूल कांग्रेस ने बुद्धिजीवियों ,चरम वामपंथियों और साथ में दक्षिणपंथियों को लेकर परिस्थितियों को अपने पक्ष में इस्तेमाल किया। कम्युनिस्टों के बारे में झूठे प्रचार कर बुद्धिजीवियों को साथ लेकर समाज के भीतर अलगाववाद जैसी परिस्थितियों का माहौल तैयार किया गया। नकली माओवादियों को लेकर जंगलमहल के वामपंथी कार्यकर्त्ताओं की हत्या की गयी। 2010 में इन्हीं परिस्थितियों के बीच SFI कोलकाता जिला का सम्मेलन आयोजित किया गया था। ऐसे मुश्किल हालात में वामपंथी छात्र  एवं युवाओं को बहुत ही कठिनाइयों एवं बाधाओं से गुजरना पड़ा। कई कॉलेजों में छात्रों को झूठे मामलों में फंसाकर गिरफ्तार भी किया गया। बहुत से कॉलेजों में छात्रों को शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न से गुजरना पड़ा। परिस्थितियां ऐसी उलझी हुई थी कि छात्र यूनियन अपना कोई भी कार्यक्रम कैम्पस में नहीं कर पा रहे थे। उसी दौर के बीच कैम्पस के भीतर असामाजिक तत्वों का उपद्रव बढ़ने लगा। SFI यूनिट का कार्यक्रम तीन तरह से करना पड़ा, कहीं-कहीं गुप्त तरीके से, कहीं पर आधा छिपकर, आधा सामना करके या कहीं खुलेआम होकर भी करना पड़ा। पूरे कोलकाता व पश्चिम बंगाल का यही माहौल था। उसी सम्मेलन से हम दोनों को  एकसाथ काम करने का मौका मिला। सुदिप्त गुप्ता के साथ मेरी पहचान उसी दिन से शुरू   हुई जो आज भी बरकरार है। एक मामूली से लड़के की आंखों का अंदाज ही अलग था, जो एकदम सरल दिखता था, लेकिन उसकी आंखें कुछ अलग बयां करती थी। सुदिप्त की आंखें हमें एक अलग सपने दिखा रही थी, उसके बोलने का लहजा ही अलग था, वाद- विवाद में काफी माहिर था, नया नारा बनाने की उसके अंदर एक अलग प्रतिभा थी। छात्रों को वह अपना एक अलग प्रतिबिम्ब छोड़ गया। ‘छोटो-छोटो कुड़ीदेर फुटबार संग्राम चोलछे-चोलबे’(छोटी-छोटी कलियों के खिलने का संघर्ष जारी है,जारी रहेगा)। यह नारा उसी का था, जो SFI का लोकप्रिय नारा बन गया। मुझे उसके साथ राज्य सम्मेलन व अखिल भारतीय सम्मेलन में जाने का गर्व आज भी है। सफर करते वक्त उसके साथ बहुत सारी यादें जुड़ी हुई हैं, जो मुझे आज भी याद आते हैं।

उसका सपना था कि वाममोर्चे की सरकार फिर से आये और नये सुशासन का जन्म हो। वह समाजवाद का सपना देखता था। हमलोगों ने छात्र आंदोलन करते हुए युवा आंदोलन में प्रवेश किया, जिंदगी एक-एक वर्ष करके बढ़ने लगी, लेकिन सुदीप्त गुप्ता आज भी छात्र आंदोलन के प्रतीक बने हुए हैं। उसकी उम्र कभी नहीं बढ़ सकती; वो आज भी छात्र  आंदोलन का प्रतीक बन कर हमारी यादों में एवं हमारी साँसों में जिंदा है। मुझे आज भी वह रात याद है जब विद्यासागर वीमेंस कॉलेज का चुनाव (2011, वाममोर्चे की सरकार जाने के बाद) हुआ, उसमें सुदीप्त की अहम् भूमिका थी। वह सारी रात जागकर, चैनफ्लैग से लेकर मीटिंग व सभायें आदि सभी में हिस्सेदारी की। जो चुनाव हम जीते थे, वह सुदीप्त के बिना असंभव था।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के फीस में बढ़ोत्तरी के खिलाफ आंदोलन में भी उसकी सराहनीय भूमिका थी। ‘कोलकाता अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले’ में बुक स्टाल चलाने में उसका विशेष योगदान रहता था। 60 व 70 के दशक के छात्र आंदोलन की पुस्तक जो कामरेड श्यामल चक्रवर्ती द्वारा लिखी गयी है, उसका अनुलेखक सुदीप्त ही था। छात्र संसद के चुनाव के लिए, 2 अप्रैल, 2013 को जब दोपहर में कॉलेज स्ट्रीट से जुलूस निकाला गया, उसी में उसने अंतिम बार नारा लगाया था और आखिरी बार बात हुयी थी।

सुदीप्त को इसलिए शहीद नहीं होना पड़ा कि वह अच्छा छात्र था, या अच्छा गाता था या अच्छा नारा लिखता था, उसे इसलिए शहीद होना पड़ा, क्योंकि वह लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा था। कालेज और विश्वविद्यालयों में लोकतांत्रिक तरीके से छात्र संसद चुनाव कराने की मांग पर SFIके जुलूस में वह अंतिम बार शामिल हुआ था। उसको इसलिये शहीद होना पड़ा कि वह विश्वास करता था कि ‘When politics determine our education, that we have to determine the politics’. सुदिप्त शहीद हुआ इसलिये कि वह सवाल उठाता था हमारे हक के लिए और हक की लड़ाई आज भी जारी है और जारी रहेगी। सुदीप्त तू आज भी जिन्दा है और रहेगा। प्रकाश की तरह प्रकाशमय है और रहेगा।वह शहीद ए आज़म भगत सिंह से बहुत प्रभावित था।नजरूल मंच में हुयी शोक सभा में SFI पश्चिम बंगाल के सचिव देवज्योति दास के शब्दों में –” सुदीप्त कहता था — भगत सिंह में कितना साहस था “। टोपी पहने हुए शहीद ए आज़म भगत सिंह की तरह सफेद टोपी पहने जुलूस में जाते हुए शहीद सुदीप्त गुप्त की तस्वीर वामपंथी आंदोलन का लोकप्रिय चेहरा है।

लाल लाल लाल सलाम कामरेड!