पिछले वर्ष 2 अप्रैल को इसी तरह  गर्मी का महीना था। कालेज , विश्वविद्यालय के कैम्पसों में छात्र यूनियन पर कब्ज़ा करने के लिए तृणमूल छात्र परिषद ने आतंक फैला रखा था । गार्डेनरिच कालेज में छात्र – संसद के चुनाव के समय एक पुलिस इन्स्पेक्टर तापस चौधरी को तृणमूल के गुंडों ने सरेआम गोली चलाकर हत्या कर दी । यह घटना घटने के बाद ही शिक्षा मंत्री ब्रात्य बासु ने  6 महीने के लिए शिक्षा संस्थानों में चुनाव पर प्रतिबन्ध लगा दिया । 2 अप्रैल को एस.एफ.आई सहित चार वामपंथी छात्र संगठनों ने कानून तोड़ो आन्दोलन का आह्वान किया । मैं भी इस आन्दोलन में हिस्सा लेने के लिए दोपहर कालेज स्ट्रीट पहुँची । वहाँ  हजारों की संख्या में छात्र छात्राएं उपस्थित थे । दोपहर और ऊपर से आग लगा देने वाली गर्मी भी खूब थी । फिर भी वे  नारा लगा रहे थे । एक – एक करके जुलूस आ रहा था। मैं पेड़ के नीचे खड़ी हो गई । कतारों की संख्या में छात्र छात्राएँ आ रहे थे ।  उनके अन्दर जो जोश , उत्साह  और हौसला था वह देखने लायक था । पूरा कालेज स्ट्रीट नारों से गूँजने लगा । लोग एकटक इस दृश्य को देखते रह गए । जब सभी छात्र छात्राएँ कालेज स्ट्रीट पहुँच गए तब एस.एफ.आई के पश्चिम बंगाल के सचिव देवज्योति दास  और अध्यक्ष मधुजा सेनराय ने भाषण दिया । इसके बाद विशाल जुलूस रानी रासमणि की ओर रवाना हुआ । जुलूस देखने लायक था । मैंने आज तक छात्र – छात्राओं का इतना बड़ा जुलूस नहीं देखा था । मैं भी कदम से कदम मिलाते हुए नारा लगाने लगी । जब जुलूस धर्मतल्ला पहुँचा तो मेट्रो चैनल के पास तृणमूल की मीटिंग चल रही थी ।दूसरी तरफ वाममोर्चा का मंच रानी रासमणि में बना हुआ था ।सभा शाम को होने वाली थी | जुलूस रानी रासमणि पहुँचा वहाँ 144  धारा लगा दिया गया था । हजारों की संख्या में पुलिस वहाँ  खड़ी थी हाथों में डंडा लेकर । जैसे – जैसे जुलूस आगे बढ़ता गया नारों की गूँज बढ़ती गई । 144  धारा पार करते ही पुलिस छात्र – छात्राओं के ऊपर निर्ममता से लाठी चार्ज करने लगी । पुलिस जिस क्रूरता से मार रही थी, देखकर लग ही नहीं रहा था कि ये इतने संवेदनहीन हो सकते हैं । मैं देख रही थी कि किस प्रकार पुलिस उन्हें प्रिजन भैन में जबरदस्ती उठा रही थी । पुलिस की लाठियों से मार खाने के बाद भी साथियों का जोश कम नहीं हुआ था । वे ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाते रहे । कुछ जो इधर – उधर नौजवान खड़े थें , पुलिस उन्हें भी दौड़ाने लगी । जो साथी पकड़े गए उन्हें जेल ले जाया गया । मैं शाम तक घर पहुँच गई । घर पहुँचते ही टी.वी के समाचार में सुना कि  पुलिस की मार से एक छात्र की मृत्यु हो गई, जिसकी उम्र 23 साल की  थी | प्रशासन उसकी मृत्यु का दोष स्वयं न मानकर यह बता रहा था कि बिजली के खम्भे से चोट लगने के कारण ही उसकी मृत्यु हुई है । उस समय बंगाल की मुख्यमंत्री ममत्ता बनर्जी साल्टलेक  स्टेडियम में IPL खेल का उदघाटन करने में व्यस्त थी ।पुलिस प्रशासन की हिफाजत में  एक छात्र  की मृत्यु हो गई इसका उन्हें थोड़ा भी शोक नहीं हुआ। शाहरुख खाँ और फिल्मी कलाकारों के डांस में शामिल होना उनके लिए ज्यादा जरुरी था । जब मीडिया ने मुख्यमंत्री से प्रश्न किया तो उन्होंने कहा – ‘ यह दुर्घटना है । खम्भे से चोट लगने के कारण सुदीप्त गुप्ता की मौत हुई है ।’ मुख्यमंत्री का वक्तव्य सुनते ही बंगाल की जनता  शर्मसार हो गई ।

   3 अप्रैल को सुदीप्त गुप्ता की  हत्या के प्रतिवाद में शोक जुलूस निकलने वाला था । ‘गणशक्ति’ समाचार  पत्र में एस एफ आई के सचिव देवज्योति दास ने सम्पादकीय पेज पर शहीद सुदीप्त गुप्ता पर लेख लिखा था । जिसे पढ़कर मैं जान पाई कि सुदीप्त गुप्ता क्रान्तिकारियों की किताबें ज्यादा पढ़ता था । भगतसिंह उसके प्रेरणा थे  भगतसिंह और सुदीप्त गुप्ता की उम्र समान थी । सुदीप्त गुप्ता  की आँखों में मुझे भगतसिंह दिखाई दिया । इतिहास गवाह है क्रान्ति की  वेदी पर नौजवान ही प्राणों का बलिदान निस्वार्थ  करता है । मैं भी शोक जुलूस में शामिल होने के लिए दिनेश मजुमदार भवन पहुँची । सड़क पर एस.एफ.आई  का झंडा लहरा रहा था । इतनी भीड़ थी कि गाडी चलना भी बंद हो गया । तब तक सुदीप्त का मृत शरीर नहीं आया था । दिनेश मजुमदार भवन के नीचे एक मंच बना हुआ था जिस पर सुदीप्त गुप्ता की फोटो लगी थी । सभी की आँखें नम थी । पूरा बंगाल शोक में डूब गया था । थोड़ी देर बाद सुदीप्त का मृत शरीर आया तो पूरी भीड़ सुदीप्त की एक झलक देखने के लिए बेचैन हो उठी । सुदीप्त को देखते ही मेरी आँखें नम हो गई । इतनी भीड़ मैंने पहली बार देखी थी । सुखदेव को भूख हड़ताल के दौरान भगतसिंह ने पत्र लिखा था । जिसमें यह लिखा था —“ 13 सितम्बर 1929 को यतीन्द्रनाथ दास  63 दिन की भूख  हड़    ताल के बाद शहीद हो गए । जब उनका पार्थिव शरीर लाहौर से कलकत्ता ले जाया जा रहा था तो हर बड़े शहर के स्टेशन पर लाखों की भीड़ उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ती थी । कलकत्ता में 4 लाख लोग उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए । ” ऐसी ही भीड़ मुझे सुदीप्त गुप्ता की शोक जुलूस में देखने को मिली । सुदीप्त गुप्ता को श्रद्धांजलि देने के लिए वाममोर्चा के पूर्व मुख्यमंत्री पोलित ब्यूरो के सदस्य  बुद्धदेव भट्टचार्य ,विपक्ष नेता एवं पोलित ब्यूरो के सदस्य सूर्यकांत मिश्र , छात्र आन्दोलन के पूर्व नेता गौतम देव , मोहम्मद सलीम एवं अन्य नेतागण उपस्थित थे । ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ , ‘ हम तुम्हे भूले नहीं हैं ,भूलेंगें नहीं सुदीप्त’ आदि नारों से गूँजने लगा ।

भगतसिंह जब दुर्गाभाभी के साथ कलकत्ता आ रहे थे तो टोपी पहना हुआ उनका चेहरा लोकप्रिय हुआ । भगतसिंह के बाद सुदीप्त गुप्ता दूसरा ऐसा शहीद था टोपी पहना हुआ ,जिसका  मासूम चेहरा आँखों के सामने घूमता है । 

एस.एफ.आई सहित सभी वामपंथी छात्र संगठनों ने 17 अप्रैल को ‘नजरुल मंच’ में सुदीप्त गुप्ता की याद में शोक सभा का आयोजन किया था । इधर सरकार ने सुदीप्त गुप्ता की मौत की दुर्घटना को दबाने के लिए ऐडी  चोटी एक कर दी ,लेकिन सफल नहीं हो पाई । जिसका प्रमाण ‘नजरुल मंच’ में देखने को मिला । मैं भी शोक सभा में शामिल होने के लिए गई । जैसी ही मैं पहुँची मैंने देखा चारों तरफ सुदीप्त गुप्ता की फोटो लगी थी और एस. एफ. आई का झंडा हवा के झोंकों से लहरा रहा था । पूरा हाल लोगों से खचाखच भरा हुआ था । पैर रखने की भी जगह नहीं मिल पा रही थी । मैं किसी तरह कोने में खड़ी हो गई । थोड़ी देर बाद बाहर भी जगह कम पर गई । बाहर भी माइक लगा हुआ था ताकि लोग सुन सके । मंच पर बैनर में सुदीप्त गुप्ता की फोटो थी और उस फोटो के नीचे लिखा हुआ था – ” तुई देखेछिली लाल सुर्जेर आलो , तुई चेयेछिली रकते रांगा भोर , प्रतिवादी तोर कंठे छिलो गान , चिन्हीत तुई ताई तो मरण तोर । ”

शोक सभा में सबसे पहले सुदीप्त गुप्ता के ऊपर बनी डाक्यूमेंटरी 30 मिनट तक दिखाई गई । जिसे देखकर सभी की आँखें गीली हो गई । मेरी आँखों में भी आँसू आ गए । डाक्यूमेंटरी में जो भी सुदीप्त की बातें करता कहते – कहते उसकी भी आँखें नम हो जाती   शोक सभा शुरू होने पे एस.एफ. आई की पश्चिम बंगाल राज्य कमेटी की अध्यक्ष मधुजा सेनराय ने शोक प्रस्ताव का पाठ किया । उसके बाद अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करते हुए उसकी भी आँखें नम हो गई । उसने कहा —“ जिस लड़ाई को लड़ते हुए सुदीप्त गुप्ता शहीद हुआ , उस लड़ाई को हमलोग जारी रखेंगें । सुदीप्त हमेशा हमारे बीच , हमारी लड़ाई में शामिल रहेगा । ” पूरा हाल ‘सुदीप्त गुप्ता अमर रहे’  के नारों से गूँज उठा । थोड़ी देर बाद सुदीप्त गुप्ता के पिता आए । हाल में उपस्थित सभी लोग खड़े हो गए । मंच पर आते ही वे पोडियम के पास गए जहाँ  सुदीप्त का  फोटो लगा था । वे फोटो को चूमने लगे । हाल में एक मिनट के लिए सन्नाटा फैल गया । सभी लोग एकटक देखते रह गए । प्रणव  गुप्ता ने वायलिन बजाकर अपने बेटे को श्राद्धाँजलि दी । फ़िल्म निर्देशक मृणाल सेन अस्वस्थ होने के कारण शोक सभा में नहीं आ सके लेकिन उन्होंने शोक सन्देश लिख कर भेज दिया था । जिसे मधुजा सेनराय ने पढ़कर सुनाया ।एस.एफ.आई पश्चिम बंगाल राज्य कमेटी के सचिव देवज्योति दास ने कहा –“ सुदीप्त बहुत ही हँसमुख था । वह हमेशा कहा कहता भगतसिंह कितने साहसी थे । इतनी कम उम्र में देश के लिए शहीद हो गए । भगतसिंह सुदीप्त गुप्ता के आदर्श थे । ”

हाल में उपस्थित सभी लोगों ने संकल्प लिया । तुम्हारे बलिदान को हम व्यर्थ नहीं होने देगें हम लड़ेंगें । अवतार सिंह ‘ पाश ‘ की कविता ‘हम लड़ेंगें साथी’ याद आ रही थी —

“ हम लड़ेंगें जब तक

दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकी है …

जब बंदूक न हुई , तब तलवार होगी

जब तलवार न हुई , लड़ने की लगन होगी

लड़ने का ढंग न हुई , लड़ने की जरुरत होगी

और हम लड़ेंगें साथी ….

हम लड़ेंगें

कि लड़ने के बगैर कुछ नहीं मिलता

हम लड़ेंगें

लड़ते हुए जो मर गए

उनकी याद जिन्दा रखने को

हम लड़ेंगें साथी । ”

सुदीप्त गुप्ता को शहीद हुए दस साल होने जा रहा है । आज भी उसकी लड़ाई जारी है और जब तक हम सुदीप्त के सपनों को साकार नहीं कर देते तब तक हम रुकेंगें नहीं । हम  यह  दृढ संकल्प लेते हैं कि मरते दम तक हम लड़ेंगें । भगतसिंह ने अपने लेख ‘ युवक’ में लिखा है —-“ सच्चा युवक तो बिना झिझक के मृत्यु का आलिंगन करता है , चौखी संगीनों के सामने छाती खोलकर डट जाता है , टोप के मुँह पर बैठकर भी मुस्कुराता ही रहता है , बेड़ियों की झंकार पर राष्ट्रीय गान गाता है और फाँसी के तख्ते पर अट्टहासपूर्वक आरूढ़ हो जाता है । फाँसी के दिन युवक का ही वजन बढ़ता है ।”  

सुदीप्त गुप्ता की शोक सभा में

मृणाल सेन की चिट्ठी

कोलकत्ता 17 अप्रैल । बहुत वर्षों पहले में भी तुम्हारी तरह छात्र था । अन्याय के विरुद्ध प्रतिवाद और प्रतिरोध में शामिल होता था । तुम्हारी तरह मैं भी आँखों के सामने पुलिस को अंधाधुंध गोली चलाते देखा है । उस समय हमारा नारा था – स्वाधीनता ,शक्ति और प्रगति । सुदीप्त की श्रद्धांजलि सभा में अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फ़िल्म निर्देशक मृणाल सेन ने अतीत के संघर्षों की याद ताजा कर दी । मृणाल सेन सशरीर ‘नजरुल मंच’ में उपस्थित नहीं थे । उम्र के कारण शारीरिक अस्वस्थता की बात स्वीकार करते हुए उन्होंने चिट्ठी में अतीत के छात्र आन्दोलन के अनुभवों को लिखा था । उन्होंने विद्यार्थियों से प्रश्न किया , आज सुदीप्त की हत्या क्या तुम लोग भूल पा रहे हो ? यह भूलने की बात नहीं है ।प्रतिवाद और प्रतिरोध को और तेज करो । खुश रहो । दृढ संकल्प के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ो । वामपंथी छात्र आन्दोलन को संबोधित मृणाल सेन की इस चिट्ठी को नजरुल मंच में कामरेड सुदीप्त गुप्ता की श्रद्धांजलि सभा में एस.एफ.आई पश्चिम बंगाल की अध्यक्ष मधुजा सेनराय ने पढ़कर सुनाया ।