चाय बगान के मजदूर अपनी सारे जीवन की कमाई की पूंजी के तौर परअपने पी एफ और ग्रैच्युटी का पैसा को ही सोचते हैं। इन पैसों के साथ वे अपने जीवन के सपने को जोड़ लेते हैं , बेटा- बेटी की शिक्षा , बेटी की शादी ,एक रहने लायक मकान और उधारी चुकता इत्यादि, लेकिन जब एक चाय मजदूर 58 साल की उम्र में रिटायर्ड होता है तब उसका सोचा हुआ हर सपना टूट कर चूर -चूर हो जाता है। जिस समय उसे अपने पी एफ और ग्रैच्युटी के पैसों की जरूरत होती है ,तब उसके सामने बहुत सी समस्याएँ सामने दिखायी पड़ती हैं। नियम अनुसार हर चाय मजदूर को अपना कर्मजीवन समाप्त होने के बाद चाय बागान से रिटायरमेंट लेने का नोटिस आ जाता है ।फिर उन्हें नियम अनुसार रिटायरमेन्ट लेना पड़ता है ।चाय बागान का खाता से उनका नाम कट्टी हो जाता है और वही काम को उनके अपने किसी बेटे, बेटी या बहू को देना पड़ता है और उनको अपना पी एफ , ग्रैच्युटी का पैसा क्लेम करना पड़ता है ।

इन क्लेम करने में पूरी तरह से चाय बागान के पी एफ बाबू की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन जब मजदूर अपना पैसा क्लेम करने के लिए जाते हैं ,चाय बागान के ऑफिस में तब PF बाबू उनका समस्त डोकुमेंट देखते हुए बोलते हैं कि तुम्हारा आधार कार्ड में उम्र नहीं हुआ है, जन्म तारीख गलत है या फिर तुम्हारा नाम में गड़बड़ी है, इसे सुधार कर लाना होगा ,तब श्रमिक अपना क्लेम नहीं कर पाता। वापस घर आ कर अपना सटीक नाम ,उम्र ,जन्म तारीख वाला डोकुमेंट जुगाड़ करने में जुट जाता है। ऐसे ही 6महीना, साल बीत जाता है । मजदूर परेशान होजाता है , वह कुछ सोच नहीं पाता और दिन पर दिन उसकी परेशानी बढ़ते रहती है। फिर एकदिन उसके घर पर एक पी एफ का दलाल आता है और मजदूर को बोलता है कि मैं तुम्हारा पी एफ और ग्रैच्युटी का समस्या समाधान कर दूँगा ।सारा डोकुमेंट बना दूँगा लेकिन एक शर्त रहेगा …….. मजदूर का बैंक का पासबुक से लेकर सारा डोकुमेंट सही बनाने का खर्च दलाल का रहेगा लेकिन पी एफ और ग्रैच्युटी का पैसा आने के बाद उसे आधा हिस्सा देना होगा। मजदूर के पास और कोई रास्ता नहीं रहते हुए उसे इस समझौते को मानना पड़ता है।

असली तौर पर देखा जाए तो मजदूर का जो भी डोकुमेंट गलत है उसे सुधारना चाय बागान के अधिकारियों और सरकार की जिम्मेदारी होना चाहिये ,जब कि एक रिटायरमेंट लेने वाले चाय मजदूर चाय बागान में काफी दिनों से काम कर रहे हैं , हर चाय मजदूर का डाटा चाय बागान के अधिकारियों के पास होना चाहिये ।फिर भी सही समय में चाय बागान के अधिकारी मजदूर की समस्याओं को सुधारने की कोशश नहीं करते हैं, हालांकि हर चायबागान में एक पी एफ के लिए क्लर्क रहते हैं, उनका काम ही है सारे समस्याओं को सुधारने के लिए मजदूर को सलाह देना ।लेकिन वह पी एफ बाबू भी चाय मजदूर के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करता। मजदूर की समस्या को और जटिल रूप से पेश करता है। असल में वह पी एफ बाबू भी दलाल से मिला रहता है और वह भी दलाली खाता है। मजदूर अगर अपने तरीके से पी एफ ऑफिस में जाकर अपन काम हासिल करने की कोशिश करता है तो वह नाकाम रहता है ।असल मे पी एफ ऑफिस तक दलाली का पैसा जाता है। पी एफ ऑफिस आना जाना करते -करते मजदूर का चप्पल घिस जाता है लेकिन वह अपना काम नहीं करा पाता ।

बंगाल में जबसे तृणमूल की सरकार आयी, दलालों ने सोचा कि उनकी ही सरकार हो गयी है और मजदूर को जैसे मर्जी लूटने लगे।

वर्तमान समय में चाय मजदूर गंभीर परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, राज्य में तृणमूल कांग्रेस और केंद्र में भाजपा की सरकार दोनों ही मजदूर की समस्या को सुलझाने में व्यर्थ हैं। जबसे लालझंडा चाय बागान में कमजोर हुआ है तबसे श्रमिकों के शोषण की मात्रा बढ़ती रही है, शासक दलके यूनियन वाले मालिक से मिल कर मजदूरों के अर्जित अधिकार को हरण करने लगे और अपना पाकेट भरने लगे।

चाय मजदूरों का इतना शोषण है है कि उनकी पीठ दीवार से सट चुकी है ,अब वह बर्दाश्त के बाहर है ।
इस दौरान चाय बागान में धीरे- धीरे लाल झंडा की मीटिंग, जुलूस में मजदूर वर्ग की संख्या बढ़ रही है। लाइन मीटिंग सब में मजदूर खुल कर अपनी समस्याओं को बोल रहे हैं। आशा है फिर से चाय बागान में एक नयी क्रान्ति होने की संभावना है।