“इस दौर-ए-सियासत का इतना सा फ़साना है

बस्ती भी जलानी है, मातम भी मनाना है”।

वसीम बरेलवी साहब की लिखी ये दो पंक्तियाँ आज के मौजूदा दौर की स्थिति बयां कर रही है। आज एक ओर जहाँ आए दिन देश के किसी न किसी प्रान्त से सांप्रदायिक हिंसा की खबरें आती रहती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी स्थान हैं जो सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल हैं।

हमारे इस कोयलांचल में भी विभिन्न जाति,धर्म के लोग निवास करते हैं ,जो देश के विभिन्न प्रांतों से आकर यहां काम करते हैं। कोयला मजदूरों का मोहल्ला जाति-धर्म, ऊंच-नीच जैसे जघन्य रूढ़िवादी विचारों से परे है। मजदूरों के मोहल्ले में एक आवास में हिंदू तो, बगल वाले में मुस्लिम, एक आवास में ऊंची जाति का व्यक्ति, तो बगल वाले में कोई नीची जाति का व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के निवास करते हैं एवं  अपना रोजगार कर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं।

आज की कहानी ऐसे ही दो परिवार की, जो मजदूर कॉलोनी में आस पड़ोस के क्वार्टर  में रहते थे। एक परिवार हिंदू धर्म का था तो दूसरा मुस्लिम। दोनों ही परिवारों में आपसी मेल मिलाप अपने सगे परिवार के लोगों के जैसा ही था। दोनों परिवार के मुखिया कोलियरी में काम करते थे और उन दोनों में भी अपने सगे भाई जैसा ही संबंध था । दोनों एक साथ ही ड्यूटी करते थे, एक साथ ही बाजार जाते थे, मतलब सब समय दोनों एक साथ ही दिखाई पढ़ते थे। कोलियरी के लोग उन्हें जय-वीरू कहते थे। दोनों किसी भी धर्म के धार्मिक अनुष्ठानों में भी एक साथ ही नजर आते थे।

एक बार की बात है दुर्गा पूजा का समय नजदीक आ रहा था और हर साल की तरह इस साल भी कोलियरी में दुर्गा पूजा करने का फैसला हुआ और पूजा का आयोजन सफलतापूर्वक हो सके इसके लिए एक बैठक का आयोजन किया गया। सभी लोग उस बैठक में पहुंच अपने -अपने विचार रखे और  सब कुछ तय किया गया। पूजा के आयोजन हेतु चंदा कौन-कौन काटेगा इसका नाम भी तय हुआ। चंदा काटने में उस मुस्लिम व्यक्ति का नाम नहीं रखा गया,  सभा में उपस्थित लोगों की सोच थी कि उनका धर्म अलग है ,वे हमारे दुर्गा पूजा में चंदा क्यों काटेंगे? इसलिए उनका नाम नहीं रखा था। अगले दिन जब उनका साथी शाम को लौट कर आया तब उन्होंने उससे पूछा कि कहां गए थे, सुबह से ढूंढ रहा हूं । उसने कहा, कुछ नहीं यार , दुर्गा पूजा का चंदा काटने के लिए गया था । इस पर मुस्लिम व्यक्ति बोला, मुझे क्यों नहीं बुलाया, मैं तो सुबह से घर में ही हूं। उसके साथी ने जवाब दिया, जानबूझकर नहीं बुलाया, पता नहीं तुम दुर्गा पूजा का चंदा काटने जाओगे या नहीं। इस पर वह मुस्लिम व्यक्ति हँसते हुए कहा, इतने दिन से तुम्हारे साथ रह रहा हूँ। तुमने मुझे इतना ही समझा है, क्यों नहीं जाऊंगा। हमें बचपन से ही सिखाया गया , अल्लाह और ईश्वर एक है । आप जब भी चंदा काटने के लिए जाओगे, मुझे बुला लेना, मैं घर में ही रहूंगा । अगले दिन से चंदा काटने में सबसे आगे वह मुस्लिम व्यक्ति रहा केवल इतना ही नहीं पूरे दुर्गा पूजा के आयोजन में वह व्यक्ति सक्रिय भूमिका में नजर आया। अगले साल ईद का त्यौहार आया ।अब ईद के अवसर पर कोलियरी में कव्वाली का प्रोग्राम रखा गया था। कव्वाली के कार्यक्रम को सफल करने के लिए सभी लग पड़े। इस कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु उसके दोस्त जो हिंदू धर्म से था, ने जी तोड़ मेहनत की। और कव्वाली के कार्यक्रम का सभी धर्मों के लोगों ने जमकर रात भर लुत्फ उठाया । कुछ स्वार्थी किस्म के लोगों ने दोनों को कई बार समझाया कि तुम लोग का धर्म अलग-अलग है, अपने अपने धर्मों का पालन करो। इस पर उन दोनों का जवाब रहता–” हम दोनों दोस्त हैं और हमारे लिए हमारी दोस्ती ही सबसे बड़ा धर्म है और हम उसी का पालन कर रहे हैं। “

कुछ बर्षों के बाद दोनों नौकरी से रिटायर्ड हुए और दोनों अपने अपने पैतृक घर चले गये।

कुछ वर्षों बाद जब  किसी काम से दोनों लोग जब कोलियरी आए तो देखा गया कि दोनों की दोस्ती आज भी पहले की तरह ही बरकरार है। केवल यही नहीं  दोनों से बातचीत के क्रम में पता चला कि वे अपने -अपने पैतृक गावों में भी सांप्रदायिक सौहार्द को कयम रखने के लिए अपने अपने गांव के लोगों को सांप्रदायिक जहर के खिलाफ जागरूक भी कर रहें हैं। उन्होंने  बताया कि जो शिक्षा इस जगह से ग्रहण की है उसका प्रचार करना आज के इस कठिन समय में करना अत्यंत आवश्यक है कारण घर्म के आड़ में वोट बटोरने वाले समाज पर गिद्ध की तरह नजर गड़ाये बैठे हैं।

उनकी बातें सुन कहा काश !आप दोनों के जैसी सोच सभी की हो जाती तो धर्म के नाम पर धंधा करने वाले की दुकानें कब की बंद हो जाती। उन्होंने कहा ,इस साप्रदायिकता नामक जहर के खिलाफ आम जनता को एकजुट होना अत्यंत जरूरी है अन्यथा नवाज़ देवबंदी की यह कविता सारी दास्तां बयां कर रही है_

“जलते घर को देखने वालों,

फूस का छप्पर आपका है,

आपके पीछे तेज हवा है

आगे मुकद्दर आपका है.

उसके कत्ल पर मैं भी चुप था

मेरा नंबर अब आया

मेरे कत्ल पर आप भी चुप हैं

अगला नंबर आपका है।”