भारत में कोयला खनन की जन्मस्थली के रूप में अपनी पहचान रखने वाला रानीगंज आज भू-धंसान, गैस और आग जैसी समस्याओं से पिछले कई दशकों से जूझ रहा है तथा इस क्षेत्र के निवासी आतंक के साये में जीवन जीने को मजबूर हैं। पूरे देश में रोशनी बांटने वाले इस रानीगंज कोयलांचल का भविष्य अंधकारमय होने की राह पर है।

443.59 वर्ग कि.मी पर फैला रानीगंज कोयला क्षेत्र पूरे भारत को लगभग 200 वर्षों से ऊर्जा उत्पादन का प्रमुख स्रोत ” कोयला की आपूर्ति कर रहा है । 1774 ई. में मेसर्स सुमनेर और हेटली द्वारा दामोदर नदी के पश्चिमी तट पर सर्वप्रथम कोयला खनन प्रारंभ किया गया। 1813 ई. में ईस्ट कंपनी का एकाधिकार को रद्द किया गया। 1820 ई. में पहले कोयला कंपनी मेसर्स एलेक्सेंडर की स्थापना हुई। 1835 ई. में पहली भारतीय कोयला कंपनी की स्थापना हुई “M/S Carr. & Tagore” की स्थापना हुई, उसके बाद 1843 ई. में पहले संयुक्त कंपनी मेसर्स बंगाल कोल कंपनी की स्थापना हुई। तथापि एक शताब्दी तक भारतीय कोयला खनन का विकास, मांग की कमी के कारण कोयले के उत्पादन में कमी रही, लेकिन 1853 ई. में वाष्प चालित रेलगाड़ी के आने से इसे बढ़ावा मिला। इसके बाद रानीगंज कोयला क्षेत्र की बहुत सारे भूमिगत खदानों से खनन प्रारंभ हुआ एवं कोयले का उत्पादन पूरे जोरों के साथ शुरू हुआ। उस समय उत्पादित कोयले को भारत के दूसरे भाग में भेजने के लिए जलमार्ग का प्रयोग किया जाता था। दामोदर और अजय नदी में नाव या बोट “boat” के द्वारा कोयला का स्थानांतरण किया जाता था। 1855 ई. में रानीगंज से हावड़ा रेल मार्ग की स्थापना की गई।

5 सितंबर 1906 को “The Statesman” में प्रकाशित खबर के अनुसार 1904 में भारत में कुल 296 कोयला खानें थी जिसमें रानीगंज क्षेत्र में ही 256 कोयला खानें थी तथा 1905 में भारत में कुल 276 कोयला खानें में से  246 कोयला बंगाल के इसी रानीगंज क्षेत्र में थी। अगर उत्पादन की दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारत में कुल कोयला उत्पादन का 6/7 भाग इसी रानीगंज क्षेत्र से होता था । 1903  में रानीगंज कोयला क्षेत्र का उत्पादन, 30 लाख 66 हजार 720 टन, 1904 साल में इस क्षेत्र का उत्पादन,33 लाख 60 हजार 508 टन तथा 1905 साल में इस क्षेत्र के द्वारा 32 लाख 62 हजार 536 टन कोयले का उत्पादन किया गया ।

किंतु रानीगंज कोयला क्षेत्र उस समय, जहाँ कोयले का उत्पादन कर देश को अपनी ऊर्जा शक्ति से रोशन कर रहा था वहीँ दूसरी तरफ अपने क्षेत्र एवं यहाँ के निवासियों के लिए एक दहशत भरी जिंदगी का रास्ता भी तैयार कर रहा था। कोयला खदानों में कार्यरत कोयला मजदूरों की अवस्था भी सोचनीय थी, उनका शोषण भी चरम सीमा पर हो रहा था। बढ़ती हुई मांग के कारण कोयला निकालने की होड़ सी मच गयी। रानीगंज कोयला क्षेत्र में उच्चकोटि का कोयला रहने के कारण इसकी मांग भी बहुत अधिक थी । इसके लिए उत्पादन कर्ताओं ने असंख्य भूमिगत खदान बना, जहाँ-तहाँ से कोयले निकालने लगे। बड़े ही अवैज्ञानिक तरीके से कोयले का उत्पादन शुरू हो गया। उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ एक बहुत बड़ी समस्या, जो आज ज्वालामुखी का रुप धारण कर चुकी है, ने धीरे-धीरे सिर उठाना शुरू किया, वह थी भू-धसान, गैस और आग । शुरूआत के दिनों में इसे नजरअंदाज किया गया। लेकिन बाद के दिनों में जब यह समस्या भयावह रूप में सामने आई तब 1922 साल में माइनिंग मेटलर्जिकल एंड जियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (MGMI) द्वारा इस समस्या पर पहली कमेटी का गठन किया गया था। परंतु यह कमेटी कई कारणों से सफल नहीं हो पाई। फिर साल 1937 माइनिंग मेटलर्जिकल एंड जियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (MGMI) द्वारा इस समस्या पर दूसरी कमेटी का गठन किया गया। इन कमेटियों का गठन होने के बावजूद कोई ठोस कदम इस समस्या पर नहीं उठा सकी।  1950 में यह और अधिक भयावह रूप में  सामने आई तब “DGMS ” ने इसके भयानक रूप से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। 1953 में भारत सरकार ने बराकर “Subsidence ” कमिटी का गठन किया। 1963 में “Study of fire, subsidence etc by NCDC का गठन किया गया।

भारत सरकार ने 1971 में सभी कोकिंग कोल माईन (टिस्को और इस्को) को छोड़ कर सभी कोयला खानों को अपने अधीन ले लिया, 1973 में लगभग सभी “Non-coking coal Mines 711 खदानों को अपने अधीन ले लिया। जब कोलियरियों का राष्ट्रीयकरण हुआ तब लोगों में यह आशा जगी कि शायद अब इस समस्या से निजात मिलेगी। किन्तु भारत सरकार और ई.सी.एल. के काम करने के तरीके को देखकर इस अंचल के लोग और भी आतंकित हो गये। 1977  में गुगनानी कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी के अधीन बागची सब कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने रानीगंज कोयला क्षेत्र के 70 इलाके को भू-धसान, आग से प्रभावित असुरक्षित इलाका घोषित किया। इस कमेटी ने इन 70 इलाकों में से 21 इलाके को “Stabilized” करने तथा 48 इलाके के लोगों को स्थानांतरित कर दूसरे स्थान पर पुनर्वासित करने की सिफारिश की। इसके बाद प्रसाद कमेटी, CMPDIL एवं DGMS को लेकर 1990 एवं 1995 साल में दो कमेटियों का गठन किया गया। इन दो कमेटियों के अनुसार कुल 91 इलाकों को भू-धसान एवं आग से प्रभावित असुरक्षित इलाका घोषित किया। कितने एरिया एवं कितने लोग इससे प्रभावित होंगे इसका भी रिपोर्ट दिया ।प्रभावित असुरक्षित इलाके की घोषणा की, इस सूची में कुल शहर एवं गाँव 106, बस्ती- 85 धौड़ा, बाजार- 07, कारखाने-13, स्कूल-10 मंदिर-05, रेल लाइन – 2. हाई टेन्शन लाइन 12 कोलियरी मैंगजीन-4 पंचायत भवन – 02, IOC पाइप लाइन 04, खेल का मैदान – 03 को असुरक्षित घोषित किया। लेकिन ये सभी केवल कागज पर ही रहा। इलाके में इसके कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार कुछ भी नहीं किया गया। लोगों के मन में अभी भी भू-धसांन का आतंक कायम हैं । स्थिति तो आज यह है कि पूरे बंद पड़े भूमिगत खदान पानी से भरे पड़े हैं और इस हाइस्टैटिक (जलीय) दबाव से जमीन का संतुलन बना हुआ है। यदि जलस्तर किसी भी कारण नीचे उतर गया तो उसी क्षण उस अंचल में भयावह धंसान की संभावना बन जाता है। बहुत सारे जगहों पर ऐसा भी हो चुका है और आज भी जारी है। इस तरह के धंसान के कारण कोयला संग वायु का आपसी संयोग से आग लगने की संभावना रहती है। इससे व्यापक जान और माल की क्षति होती है एवं इससे बृहत्तर पर्यावरण युक्त समस्या उत्पन्न होती । आनंद बाजार पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 1996  कोयला मंत्रालय के सचिव के स्तर के एक अधिकारी के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया था, इस कमिटी ने अपने रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2000 तक इस अंचल में 5174 भूधसांन की घटनाओं का विवरण दर्ज है। इतनी बड़ी संख्या रिकार्डेड भूधसांन की  है तो आप समझ सकते हैं की अनरिकॉर्डेड की संख्या कितनी होगी।

इन भूधसांन की घटनाओं में  न जाने कितनों की जान-माल का नुकसान हो गया, बहुत से लोगों के पूरे परिवार समेत उनके घर जमींदोज हुए तो कहीं तो रास्ते पर खड़े -खड़े लोग जमींदोज हो गये हैं।

रानीगंज कोयला क्षेत्र की भयानक अवस्था को देखते हुए, तत्कालीन भारत की कोलियरी मज़दूर सभा के महामंत्री, पूर्व सांसद दिवंगत हाराधन राय ने 1997  में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और इस समस्या के समाधन के लिए अपनी जनहित याचिका दाखिल किया  (WP No. 381 of 1997)।  लम्बे समय तक सुनवाई चलने के बाद स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को 2004 में सरकार को आदेश दिया कि वे इस समस्या से निपटने के लिए मास्टर प्लान बनाएं और उसकी प्रति सर्वोच्च न्यायालय में जमा करे।  लगातार सर्वोच्च न्यायालय दबाव और आदेशों को ध्यान में रखते हुए मास्टर प्लान बना और 2009 साल में इस वित्तीय मंजूरी भी दी। इस मास्टर प्लान में कहा गया था कि रानीगंज कोयला क्षेत्र के 139 इलाके का पुनर्वासन किया जायेगा। जो कि भू-धंसान, आग और गैस से पूरी तरह प्रभावित है। इसके लिए 2661.73 करोड़ रूपये की मंजूरी भी रानीगंज कोयला क्षेत्र के लिए दी गयी। इसमें कहा गया था कि हम पुनर्वासन का काम फेजवाइज करेंगे। कुल 10 वर्षों में पूरे जगह का पुनर्वासन किया जायेगा। पहले 5 वर्षों के लिए 1476.47 करोड़ रूपये और दूसरे फेज के लिए 1185.26 करोड़ रूपये की मंजूरी दी गई और इस पुनर्वासन परियोजना को पूरा करने की जिम्मेदारी आसनसोल-दुर्गापुर विकास पाषर्द (ADDA) को दी गयी और इस मास्टर प्लान के अनुसार पुनर्वासन का काम हो रहा है कि नहीं इसकी देखभाल के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार कोयला मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक हाई पावर कमेटी का गठन भी किया गया था। प्रथम एक वर्ष इस परियोजना पर काम बहुत ही तेज गति से शुरू हुआ लेकिन बहुत ही खेद के साथ कहना पड़ता है कि 2011 में जैसे ही राज्य में तृणमूल की सरकार सत्ता में आयी। उसके बाद से ही इस परियोजना का काम एकदम ठप्प पड़ गया है। आज लगभग 11 वर्ष गुजर जाने के बाद भी पुनर्वासन का काम नहीं हो पाया। जबकि मास्टर प्लान के अनुसार दोनों  फेज का पुनर्वासन का काम शेष हो जाना चाहिए था। सभी कुछ सुविधाएँ रहते हुए भी इस परियोजना का काम आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है। इसका कारण किसी को भी जानकारी नहीं है। दूसरी तरफ लगातार भू-धंसान की घटनाएँ घट रही है। उदाहरण स्वरूप कुछ भू-धंसान की घटनाओं का उल्लेख यहाँ करता हूँ। 02.05.2011 छातिमडांगा, श्रीपुर 16.07.2011 परासकोल, 17.11.2011 बंगालपाड़ा 08.12.2011 रोटीबाटी, 12.02.2012 सॉक्तोड़िया 26.02.2012 बेलबाद, 24.08.2012 डाबर ओसीपी, 15 .07.2020 को अंडाल ब्लॉक के हरीशपुर ग्राम में एक भयानक धसान की घटना घटी जिसमें लगभग पूरा गांव ही प्रभावित हुआ। आज भी हरीशपुर गांव में उस भयानक धसान की तस्वीरें आपको नजर आएगी। दूसरी तरफ कॉमरेड हराधन राय का देहांत हो जाने के बाद भी  भारत की कोलियरी मजदूर सभा (सीटू) की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में आज भी लड़ाई जारी है। पता नहीं, न्याय कब तक मिलेगा। दोनों ही सरकारें (केन्द्र एवं राज्य) केवल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रही है। लेकिन जिसकी जरूरत आम जनता को सबसे अधिक है उस काम को दरकिनार किया जा रहा है।  इसके खिलाफ आम जनता को एकजुट हो एक स्वर में इन सरकारों के खिलाफ प्रतिवाद का बिगुल फूंकने की आवश्यकता है।