साथियों, कन्याकुमारी से कश्मीर तक देश के कोने -कोने से देश के इस संकटमय परिस्थिति में मजदूर-किसान अपने ऊपर हुए हमले के खिलाफ अपनी हक की लड़ाई को तेज करने के लिए आगामी 5 अप्रैल 2023 को दिल्ली-चलो के नारे के साथ संसद अभियान में शामिल होंगे ।आजादी के आंदोलन में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हाथ से देश को मुक्त कराने के लिए देशनायक सुभाष चंद्र बोस जी ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया था ।आजादी के एक और अमर सेनानी शहीद भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका तो उनसे पूछा गया था कि बम क्यों फेंका ?उन्होंने उत्तर दिया था कि इस बहरे बरतानिया सरकार को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत थी इसीलिए ।इसी जज्बे के साथ आजादी के आंदोलन में देश के लिए तमाम शहीदों ने जो कुर्बानियां दी है ,उस कुर्बानियों को अपने दिल में समेटकर देश बचाने किसान मजदूर और खेतिहर मजदूर इस संसद अभियान में शामिल होंगे ।

आज हम आजादी का 75 साल मना रहे हैं।

आज दुनिया व्यापी लाख कोशिशों के बावजूद भी पूँजीवाद संकट से मुक्त नहीं हो पाया है ।गरीबी, बेरोजगारी ,भुखमरी असमानता बढ़ती जा रही है ।गरीब और अमीर के बीच का फासला गहरा होता जा रहा है ।इस संकट से मुक्त होने के लिए विश्व पूँजीवाद ने नया उदार अर्थनीति के रास्ते पर और तीव्र गति से बढ़ने का ऐलान किया है ।इसी ऐलान को अमलीजामा पहना रही है ,देश की मोदी सरकार ।’मिनिमम गवर्नमेंट ,मैक्सिमम गवर्नेंस’ का नारे को लेकर मोदी सरकार देश चला रही है।वर्ष 1991, सोवियत यूनियन के पतन के बाद विश्व पूँजीवाद ने घोषणा किया कि पूँजीवाद का कोई विकल्प नहीं है। World is flat.पूँजीवाद के रास्ते में सरकारी नियंत्रण खत्म करके विश्व पूँजीवाद के विकास के रास्ते को प्रशस्त किया गया ।लेकिन विश्व पूँजीवाद के संकट ने जो असंतोष जनमानस में पैदा किया है ,उसको रोकने के लिए विश्व पूँजीवाद ने Clash of Civilization सभ्यता- संघर्ष के तत्व को पूरे विश्व में प्रयोग किया है।इसी नक्शे कदम पर हमारी देश की सरकार चल रही है ।एक तरफ पूँजीवादी लूट और दूसरी तरफ हिंदुत्व के गठबंधन के साथ मोदी सरकार का बुलडोजर तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। आज हम आजादी का अमृत काल मना रहे हैं। ”कहाँ तो तय था चरागा हरेक घर के लिए ,कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए” । (दुष्यंत कुमार)।आजादी के इतने सालों के बाद विकास का अमृत गरीब ,किसान -मजदूर के झोपड़ियों तक नहीं पहुँच पाई है ।विश्व पटल पर जब हम विश्व गुरु बनने का दावा कर रहे हैं तो हमें यह आत्ममंथन करना होगा कि आज हम कहाँ पर हैं ? देश कोरे कागज पर बना हुआ कोई नक्शा नहीं होता है।देश ,देश के लोगों से बनता है ,देश के किसान  मजदूर ,खेतिहर मजदूर से बनता है। देश के हर रोटी, कपडा़, मकान पर जिनका खून पसीना लगा रहता है ,आज क्या उनकी अवस्था बदली है ? आजादी के अमृत काल में हम जब अपने हक के सवाल पर लड़ाई कर रहे हैं तो इस प्रश्न का जवाब सत्ता में बैठे लोगों को देना होगा।

आज पूरे विश्व में उत्पादन बढ़ा है 62% , मजदूरी बढी़ है मात्र 15% ।

 राष्ट्र संघ के मानव विकास सूचकांक में भारत 132 वां देश है। भूख से पीड़ित सूचकांक मे

121 देशों में भारत का स्थान 107 वां है। पचास हजार करीबन लोगों के रहने के लिए घर नहीं है ।करीबन 13 करोड़ लोग बस्ती में रहते हैं ।19.4% लोगों के पास शौचालय नहीं है।नौ लाख परिवार को पानीय जल की सुविधा नहीं है।देश में गरीबी रेखा के नीचे 22 करोड़ 89 लाख लोग हैं जो कि पूरे विश्व में सर्वाधिक है। इससे पता चलता है कि हम कहाँ जा रहे हैं ?आजादी के बाद हमने प्रगति की है लेकिन जितनी प्रगति करनी चाहिए थी उतनी हम प्रगति नहीं कर पाए और ऐसा इसलिए हुआ है कि संपदा का समान बँटवारा नहीं हो पाया ।देश की जातीय संपदा कुछ धनी व्यक्तियों के हाथों सिमट गई ।मोदी सरकार के परम मित्र आदानी जी एशिया के चार नंबर धनी व्यक्ति के रूप में अपना नाम दर्ज कराने में सफल हुए हैं ।यह कैसा भारत हम बना रहे हैं। इस देश की धरती के असली वारिस हैं -देश के किसान -मजदूर।किसान जमीन का सीना चीर कर लोगों के लिए अनाज पैदा करते हैं।देश के लोगों का पेट भरते हैं ।उसी किसान को फसल का उचित दाम नहीं मिलता है।आज भी स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार उत्पादित फसल का डेढ़ गुना दाम किसानों को नहीं दिया गया है।किसानों के आत्महत्या में हर दिन बढ़ोतरी हो रही है। इस देश में मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री ,विधायक  सांसदों को वेतन बढ़ाने के लिए कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता है ,लेकिन आज महंगाई की मार के कारण परेशान देश के तमाम लोगों के लिए सरकार चुप्पी साधे हुयी है ।उन्हें न्यूनतम मजदूरी नहीं दिया जाता है । 2021 तक कुल 10 लाख  640 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या किया है । मजदूरों की  छटनी जारी है।देश में आजादी के बाद 45 वर्षों में बेरोजगारी की दर   7.8 प्रतिशतहै ,जो सर्वाधिक है ।

देश में 9 लाख केंद्रीय सरकारी दफ्तरों में खाली पद हैं ,लेकिन उस पर बहाली बंद है।हाल फिलहाल जो केंद्रीय बजट पेश किया गया है उसमें मनरेगा में 33% कटौती की गई है । जबकि मनरेगा गाँव में रोजगार का एकमात्र साधन था जिसने कोरोना जैसी महामारी में भी लोगों को बचा कर रखा था।वर्तमान मोदी की सरकार  इस योजना को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है जो गांव की अर्थनीति एवं रोजगार पर एक बड़ा हमला है ।हम मनरेगा को 200 दिन एवं न्यूनतम मजदूरी  ₹600 की मांग करते हैं।सरकार किसके लिए काम कर रही है ?

डिमॉनेटाइजेशन पाइप लाइन के नाम पर देश की राष्ट्रीय संपत्ति को या तो बेचा जा रहा है अथवा उनका निजीकरण किया जा रहा है। रेल  बैंक ,बीमा ,भेल ,सेल मोदी जी अपने  मित्रों के हाथों नीलाम कर रहे हैं। जिसका भुगतान देश को भविष्य में करना पड़ेगा ।नदी ,नाला ,झरना ,पानी ,सड़क ,बिजली सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों बेची जा रही है। साम्राज्यवादी शक्तियों के फरमान को मानकर चलने वाली मोदी सरकार धड़ल्ले से एफडीआई कर रही है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को ध्वस्त किया जा रहा है ।जो थोड़े बहुत कल कारखाने बचे हैं उन पर ताला लग रहा है ।नए सिरे से कल कारखाने नहीं खुल रहे हैं ।

असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या में  तेजी से बढ़ोतरी हो रही है । देश में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या करीबन 93% है जिन्हें न तो न्यूनतम मजदूरी ठीक से मिलती है और ना ही सामाजिक सुरक्षा की सुविधा।उनके लिए ,उनकी जिंदगी  ‘लिखो-फेंको पेन ‘की तरह है ।

बढ़ती हुई महंगाई से जूझने के लिए इन तमाम मजदूरों के लिए न्यूनतम ₹26,000 तथा 10,000 पेंशन की मांग पर आंदोलन जारी है  ।इन तमाम नीतियों के खिलाफ हिंदुस्तान के मजदूरों ने लगातार आंदोलन किया है। आज तक तकरीबन 17 हड़तालें देश के पैमाने पर हो चुकी है । नासिक से मुंबई तक अत्यंत कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए देश के किसानों का लॉन्ग मार्च ने सत्ताधारी लोगों का दिल दहलाकर  अपने हक की लडा़ई हेतु एक क्रांतिकारी भूमिका  अदा की है।देश की सरकार मजदूरों के ताकत के बारे में जानती है ।अगर  मजदूर पूरी ताकत के साथ भारी तादाद में मोदी सरकार के खिलाफ लामबंद हो गये तो देश की सरकार को धराशयी कर सकते हैं । जिस तरह किसानों ने कृषि कानून के खिलाफ लड़ाई करके मोदी सरकार को नतमस्तक किया ।मजदूरों की ताकत को कमजोर करने के लिए एवं पूँजीपतियों के हित में नया श्रम कोड लाया जा रहा है ।बरसों से मजदूरों ने 8 घंटा काम के सवाल पर,  सामाजिक सुरक्षा ,

न्यूनतम वेतन के सवाल पर आंदोलन किया है और यह तमाम अधिकारों को मजदूर वर्ग ने हासिल किया है। लेकिन मोदी की सरकार श्रम कोड के नाम पर इन तमाम अधिकारों का हनन करना चाहती है।12 घंटा काम का समय लागू करना चाहती है।न्यूनतम मजदूरी केंद्र की सरकार ₹173 घोषणा की है जो अत्यंत शर्मनाक है। जब हम मजदूर वर्ग ₹26,000 मजदूरी के मांग कर रहे हैं ,उस परिस्थिति में 173 रुपया न्यूनतम मजदूरी की घोषणा मजदूरों का उपहास है ।

ESI,P.F. जैसे सामाजिक सुरक्षाओं से मजदूरों को वंचित किया जा रहा है।  मालिकों के अत्याचार के खिलाफ मजदूरों की कोई भी शिकायत लेकर लेबर कोर्ट में जाने का प्रावधान का खात्मा हो रहा है। अपनी बात रखना ,प्रतिवाद करना ,संगठित होने का अधिकार संवैधानिक अधिकार है ,लेकिन श्रम कोड के तहत मोदी सरकार मजदूरों से संगठित होने का अधिकार छीनना चाहती है। इस कानून के तहत मालिकों से  मजदूरों को यूनियन करने की  स्वीकृति  लेनी पड़ेगी। अर्थात बकरे को बचने के लिए बाघ के पास भेजे जाने जैसा है।

अर्थात श्रम कोड का मतलब है “जो देंगे वह लेना होगा ,नहीं तो गेट के बाहर जाना होगा।

श्रम कोड के नाम पर देश की मोदी सरकार मजदूरों के पैर में गुलामी की बेड़ियाँ जकड़ने का काम कर रही है।

बाबा भीमराव अंबेडकर  की ‘We the people of India,’ आज खतरे में है। संविधान और संसद की मर्यादा आज तार-तार हो रही है। संविधान की जगह मनुस्मृति को लागू करने की योजना बनाई जा रही है। मजदूर किसान सरकार की नीति के खिलाफ लामबंद ना हो इसके लिए सांप्रदायिकता का खेल खेला जा रहा है। जाति -धर्म ,वेश-भूषा ,रंग -रूप के आधार पर सांप्रदायिक विभाजन का प्रयास हो रहा है।

 यह सीधी सी बात है कि मंदिर जाने का रास्ता अलग हो सकता है । मस्जिद जाने के रास्ते भी अलग हो सकते हैं। लेकिन बाजार में सामान खरीदने के लिए एक ही रास्ते से जाना पड़ता है ।कारखाने का मालिक चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान ,कारखाने में काम करने वाले मजदूर चाहे वह हिंदू हों या मुसलमान, उनका शोषण करता है ।और इसी शोषण के खिलाफ जाति -धर्म से ऊपर उठकर कारखाने में काम करने वाले मजदूर का नाम चाहे बिस्मिल हो या अशफाक

 एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने हक के सवाल पर मिल मालिक के खिलाफ आंदोलन करते हैं ।यही वर्ग चेतना है।

हिंदुस्तान मोहब्बत की मिट्टी है। यहाँ नफरत नहीं जीत सकती। ”वसुधैव कुटुंबकम “की परंपरा वाले इस देश में किसान -मजदूर कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष के रास्ते पर सड़क से संसद तक का फासला आने वाले 5 अप्रैल को दिल्ली चलो के नारे के साथ तय करेंगे। राजधानी का सीना चीर कर गगनभेदी नारों के साथ 5 अप्रैल की सुबह एक साथ लाखों हाथ ऊपर उठाकर मजदूर फिर यह नारा दोहराएंगे ‘दुनिया के मजदूर एक हो’। इंकलाब जिंदाबाद।

“माटि कहे कुम्हार से तू क्यों रोंदे मोहें,

इक दिन ऐसा आएगा, जब मैं रोदुंगा तोहें।”– कबीरदास